लाल सलाम
लाल सलाम…
मुझे नहीं पता सलाम को लाल किस ने किया
मैंने नहीं पढ़ा श्रम और शोषण को किस ने शब्द रूप दिया
मैं नहीं जानती दबे कुचले लोगों के आवाज़ से आवाज़ मिलाने को
किसने कब कम्युनिस्ट होना कहा
मुझे बस इतना पता है
जब से मेरी आंखों ने देखना सीखा है
जब से मेरे कानों ने सुनना सीखा है
जब से मेरे दिल ने धड़कना सीखा है
तब से गरीब गरीब ही हैं
फाकाकस्ती उनका नसीब ही है
एक बहुत बड़ा वर्ग उन्हें वहीं रखना चाहता है
उनकी हड्डियों पे बड़ी बड़ी हवेली खड़ा करना चाहता है
खेत में उड़ रहे टिड्डे की तरह जीवन के पराग तक हांथ तो जाय
बस मुंह लगने से पहले देश के नाम कीटनाशक प्रारब्ध बन जाय
और कुछ कम बहुत कम लोग
जिनकी आत्मा पूजी की दीवार से लग कर आत्महत्या अभी नहीं की है
जो अभी जिंदा हैं, क्यूं कि वो सुन रहे हैं
गरीबों का बेजार होना,
सरकारों का हर मोड़ पे बेकार होना
वो कोशिश कर रहे हैं
छोटी छोटी कोशिश, लेकिन…
ये कोशिश इतनी छोटी होती है
इतनी कमजोर होती है कि वो शामिल तो हो जाते हैं
भूख, गरीबी, अशिक्षा, रोजगार की लड़ाई में
मगर खुद भी धसते चले जाते हैं
न खुद लहलहा पाते हैं जीवन के खेत में
और न ही गरीबों के बनजर जीवन को
उपजाऊ जमीन कर पाते हैं
मोटी मोटी देशी विदेशी किताबों में क्या लिखा है
मुझे नहीं पता, मुझे कुछ भी तो नहीं पता
बस इतना जानती हूं
मेरे बचपन से आज तक गरीबों कि संख्या में इज़ाफ़ा ही हुआ है
कहीं कोई गरीब बस्ती धनाढ्यों की बस्ती में परिवर्तित नहीं हुआ
मुझे कुछ भी नहीं पता ऐसा क्यूं हुआ… लाल सलाम
~ सिद्धार्थ