{{{{लालूजी का ब्रह्म पिशाच}}}}
## लालूजी का ब्रह्म पिशाच ##
लेखक: दिनेश एल० “जैहिंद”
जीत की खुशी में कुछ इतने मगन हुए लालूजी कि मत पूछिए ..! कुछ ज़्यादा ही रोहू मछली और मिठाइयाँ खा लिये |
फिर क्या कहना ..? उनका पेटवा थोड़ा गड़बड़ा गया ससुरा | फिर तो क्या कहूँ उनका हाल..|
लोटे पर लोटा उठाए रहे और दौड़-दौड़ कर बाँसवाड़ी और खेत से घर को नापते रहे |
ससुरा नाम ही नहीं लेता था रुकने का या आराम होने का !
राबड़ी बोली- “हाय राम ! ई का भइल इनकरा के ?”
दोनों बेटवा भी परेशान और बेटियाँ भी परेशान ..!
परेशानी तो तब और बढ़ी जब उनके साथ दूसरा ही नाटक शुरू हो गया | डॉक्टर को बुलाने का विचार तो जैसे एकदम गलत ही साबित हुआ |
अंतिम बार जब वे अपना पछुआ बाँधकर लोटा लिये हुए अपने घर की ओर चले आ रहे थे कि एकदम अपने घरवे के पास थोड़ी दूरी पर रुक गये और जोरों से चिल्लाने लगे-बड़बड़ाने लगे– “ना-ना, हम घरवा ना जाइम !
इ घरवा हमार ना है..इ घरवा हमार ना है..!
हमार घरवा त उहै है. उहै हमार घरवा है..
उहै..उहै पीपरा के पेड़वा पर..|”
ऐसा बड़बड़ाते हुए वे अब तो कभी पीछे जाते तो कभी आगे आते | यही सिलसिला चलता रहा | सारे लोग दौड़ पड़े उनको ऐसा करते देखकर | सब अचंभित थे कि ये क्या हुआ अब इनको..? ये कौन-सी अब नयी बीमारी शुरू हो गई ….?
किसी तरह उनके बेटे और दो चार लोग उन्हें पकड़कर घर पर लाये ! परन्तु फिर भी उनका मुँह हवा-हवा और चेहरा उड़ा-उड़ा ही रहा |
लोगों को समझ में नही आ रहा था कि ये उनको क्या हुआ..?
राबड़ी और उनकी बेटियाँ तो जैसे माथा ही पीट लीं
अब तक डॉक्टर साहेब आ चुके थे | डॉक्टर ने लालूजी को दूर से ही देखा | कुछ समझा कुछ नही समझा | पर डॉक्टर भी ठहरा बिहारी ही…, उसने थोड़ी देर सोच कर कहा– “लगता है कि इनपर कोई हवा-बयार का असर है | उपरवार दिखाइये |”
तभी जमा लोगों में से एक आदमी टपक पड़ा—
“हाँ-हाँ डॉक्टर साहेब ठीक ही कह रहे है |
इनकी बात मान ही लेनी चाहिए | हमको भी लगता है कि हमरे नेताजी को जादू-टोना या भूत-प्रेत का असर हो गया है…|”
इतना उसका कहना और इतना ही लालूजीका सुनना था कि लगे लालू जी आँखें लाल-पीली करके उसे घुरने | सभी लोग अवाक ..!! हाय राम सचमुच हमरे नेताजी को इ का हो गया..? कई लोगों के मुँह से एक साथ आवाज निकली |
इधर लोगों का रूप बनाना और उधर शुरू हुआ लालूजी का रूप बनना-बिगड़ना और बकना—-
“हाँ..रे-हाँ..रे ! हम नर पिशाच ना हईं…हम त..
ब्रह्म पिशाच हईं….ब्रह्म पिशाच…!
ते..हमरा के नइखिस जानत..बोल नइखिस जानत न | पीपरा के पेड़ पर हमर घर बा | हम ओही पर रहेनीं..उहे हमर घर बा..| पच्चीस सालन से हम ओही पर रहत बानी..|
हम हईं ब्रह्म पिशाच…!”
इतनी देर में तो ये खबर जंगल की आग की तरह पूरे गाँव में फैल गई | हजारों लोग जमा हो गए लालूजी के द्वार पर |
तब तक उनके बेटों ने गाँव के ही एक भारी ओझा को बुला लाया..|
ओझा आया, देखा | सब ठीक-ठाक कर के कुछ आवश्यक सामान दुकान से मँगवाये और शुरू की उसने अपनी ओझइती —-
कुछ मंत्र वैगरह पढ़कर अक्षत डाले और जोर-जोर की फूँक मारी उसने और पूछा —-
“के बारे रे..तू..! इनको क्यों पकड़ा..?
जल्दी बता और सब जल्दी-जल्दी बक दे ..ना तो ..आज तोर खैर नहीं है..| ..समझे…!”
तंत्र-मंत्र का कुछ असर और कुछ ओझा का प्रभाव..|
लालूजी तो झूमने लगे अब |
सारे लोग अचंभित..! राबड़ी अचंभित…!!
बेटे अचंभित..और बेटिया भी अचंभित…..!!!!
सारे लोग ओझइती देख रहे थे बड़े चाव से |
फिर ओझा ने फूँक मारी और कहा —
“चल खुलके..बोल झूमके | तोर आज खैर नइखे | समझ ले |
चल गुरू….हो जा शुरू…!!”
लालूजी झूमते रहे-झूमते रहे | जब मंत्रों का प्रभाव पड़ने लगा तो लगे सब सही-सही
बकने —
“हम पीपरा पर के ब्रह्म पिशाच हईं..|
ई दौड़ दौड़ के मैदान फिरे जात रहलस ह..|
इ कुटायमा पकड़ा गईल ह.. हम धर लेनी ह..
हम एकरा के ना छोड़ब…हम एकरा के छोडिए ना सकेनी…!”
ओझा — “क्यों नहीं छोडेगा इनको..?”
ब्रह्म पिशाच — “हम इसको इसलिए नहीं छोड़ूगा क्योंकि हमारा रूतबा छीन कर इंसानों को दे दिया है इसने |”
ओझा — “ऐसा भला इन्होंने क्या किया..?”
ब्रह्म पिशाच — “इंसान इंसान होते हैं..नर पिशाच नहीं…ब्रह्म पिशाच नहीं…!!
ये सारे रूतबे हमें मिले हैं इंसानों को नहीं..|
ऐसा किसी पर लांछन लगाकर इसने भारी गलती की है |”
ओझा –“ठीक है | ऐसा गलती अब ये नहीं करेंगे छोड़ दो अब इन्हें..|”
ब्रह्म पिशाच — “नहीं ! हम नहीं छोड़ेगा इसको | इसने और भी गलती किया है |”
ओझा — “वो क्या …?”
ब्रह्म पिशाच — “एक ही छत के नीचे सभी रहते हैं | हिंदू मुस्लिम सिख इसाई, सब है भाई-भाई | परंतु इसने वोट लेने के लिए भाई- भाई को बाँटा है..| गौ हत्या और गौ मांस की बात चलाई है…|”
ओझा –“वो भी ठीक है | पर इनको माफ कर दो अब ऐसी गलती नहीं होगी..|”
ब्रह्म पिशाच — “नहीं | हम नहीं छोड़ सकता | ये हिंदू होकर भी हिंदुओं की बानी नहीं बोलता है | धर्मनिर्पेक्षता की आड़ लेकर हिंदुओं से घृना करता है और मुस्लिमों की तरफदारी करता है और तो और हिंदुओं पर धर्मपक्षता
का दोष लगाता है |”
ओझा –“अच्छा | ये भी ठीक है |अब ये ऐसा कभी नहीं करेंगे | अब तो छोड़ दो इनको !”
ब्रह्म पिशाच —“नहीं..नहीं..नहीं…!!!
हम छोडूगा नहीं..| चारों तरफ देश में शांति हैं | सब-सुख शांति से मिलजुल कर रह रहे हैं | फिर भी इसने कुछ
लोगों पर असहिष्णुता का दोष लगाकर उन्हें अपमानित और लांछित किया है…| ये गलत है | माफी के काबिल नहीं है ये |”
ओझा –“सब गलती कबूल है | अब तो माफ कर दो इनको |”
ब्रह्म पिशाच –“पक्का | वादा है ना |”
ओझा –“हाँ वादा है |”
ब्रह्म पिशाच –“तब ठीक है |अब हमको लड्डू-बर्फी खिलाओ और पानी पिलाओ |”
ओझा ने ब्रह्म पिशाच को लड्डू-बर्फी-पानी दिया | लड्डू-बर्फी-पानी पाकर ब्रह्म पिशाच शांत हो गया ! फिर तब जाकर लालूजी की जान बची और पीपरा के पेड़ पर का ब्रह्म पिशाच वापस लौट गया | अब जाके सबके मुँह पर से उदासी गयी | और देखते ही देखते लालूजी और उनका परिवार फिर प्रसन्न हो गया | #
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दिनेश एल० “जैहिंद”