लालटेन
कुछ अजीब सा है
ये शहर आजकल
ना सोता है रात मैं
बस दिन में ऊँघता है
हवाओ में इसकी
कुछ ख़ौफ़ है
निराशा है नाराज़गी है शायद
मकाँ कुछ कतराते है
दूर से मिलते है
एक गली आती है इस गली
Sanitisation के धुएँ को सूँघ
लौट जाती है फ़िर से
इन काले घने सायों में
कुछ अपना पेट पिचकाए घूमते हैं
की पेट भर सके कुछ का
कुछ रास्ते चल पड़े हैं
मीलों के सफ़र में
तलाश है उनको अपने घर की
कुछ पैदल है, कुछ चक्कों पर
कुछ कुचले है, कुछ राह के धक्कों पर
फिर भी आशा का
दीप जलाए है कोई
वो लालटेन लिए
अब भी रातों को पहरा देता है
कुछ चींटियों मकोड़ों से
दोस्ती है उसकी
वो बचाना चाहता है उनको
कुछ अजीब शहर है
कुछ अज़ीब सा मिज़ाज है इसका
@संदीप