“लाल किला”
जो किला गणतंत्र का प्रतिवर्ष ही साक्षी हुआ।
क्रांतिकारी राष्ट्रभक्तों ने विनत होकर छुआ ।।
जिस किले ने राष्ट्रभक्ति का सबब पैदा किया।
आज कुछ उद्दंडियों खूब शर्मिंदा किया।।
किंतु इसकी नींव इतनी जल्द हिल सकती नहीं।
चंद लोगों के लिए खैरात मिल सकती नहीं।।
जो किला इंसानियत को देखकर पत्थर बना।
कर्मवीरों के लिए सच्चा इबादतघर बना।।
उस किले को आप मिट्टी में मिला सकते नहीं।
एक भी पत्थर धरातल से हिला सकते नहीं।।
जिस किले को देखकर अंग्रेजियत थर्रा गई।
बुजदिलों की फ़ौज साहस देखकर घबरा गई।।
जिस किले के द्वारपालों ने विकट संकट सहे।
आपको आज़ाद करने अनगिनत सर कट गए।।
उस किले की साख धूली में मिला सकते नहीं।
राष्ट्रभक्तों के इरादों को हिला सकते नहीं।।
देश का प्यारा तिरंगा दूर से ही दिख रहा।
आज भी काली स्याही से इबारत लिख रहा।।
शान से लहरा रहा है गौर से देखो इसे।
शोर पंक्षी कर रहे हैं भोर में देखो इसे।।
सूर्य की लाली निराली भोर का चंदा वहाँ।
शान से लहरा रहा है राष्ट्र का झंडा वहाँ।।
जय हिंद! ??
जगदीश शर्मा सहज