“लाभ का लोभ”
“लाभ का लोभ”
_____________
नित्य बढ़ रहे, अब आबादी;
मिली जबसे हमें , आजादी;
होती , संसाधन की बर्बादी;
सबमें, लाभ का ही लोभ है।
फैला हुआ पूरा भ्रष्टाचार है;
लुप्त , प्रायः उच्च विचार है;
दिखता न, कोई ‘संस्कार’है;
सबमें,लाभ का ही लोभ है।
पढ़े-लिखे तो, अब घूम रहे;
अनपढ़ भी , कुर्सी चूम रहे;
नेतागण भी , खूब झूम रहे;
सबमें,लाभ का ही लोभ है।
स्वार्थी बना , सबका मन है;
देखो , कैसा विकट क्षण है;
देश से बढ़कर , आरक्षण है;
सबमें, लाभ का ही लोभ है।
जात-पात तो,एक बहाना है;
कहीं निगाहें, दूर निशाना है;
आदत बना, मुफ्त खाना है;
सबमें, लाभ का ही लोभ है।
बिन पुस्तक के,बीते सत्र है;
लक्ष्य , जाति प्रमाण-पत्र है;
जाति में, पैसों का प्रयोग है;
सबमें,लाभ का ही लोभ है।
शिक्षक के, कई फरियाद है;
शिक्षा कहीं न मिले आज है;
बच्चें को, धर्म-जाति याद है;
सबमें , लाभ का ही लोभ है।
धर्म भी, बन रही है आफत;
लालायित कुछ,मिले मुफत;
कौन बचायेगा, निज भारत;
सबमें, लाभ का ही लोभ है।
~~~~~~~~~~~~~~
स्वरचित सह मौलिक:
…..✍️पंकज कर्ण
……….कटिहार।।