लापता सिर्फ़ लेडीज नहीं, हम मर्द भी रहे हैं। हम भी खो गए हैं
लापता सिर्फ़ लेडीज नहीं, हम मर्द भी रहे हैं। हम भी खो गए हैं नौ से पांच की नौकरी में, कोचिंग कारखानों के पोस्टरों में, कंधे पर बैग टांगे, जेनरल डब्बों की भीड़ में।
दीपक की तरह फुल इंग्लिश में अपनी फूल को आई लव यू बोलने का सपना हमारा भी रहा है। पर हमारी फूल तो हमारे सामने ब्याह दी गई किसी शहर वाले प्रमोद से और हम उसे चाहकर भी ढूँढ नहीं पाए।
“मां तुम्हारे लिए खाना है न!” पूछकर ही खाया पहला निवाला, बाबूजी की उम्मीदें सर पर उठाकर चलते रहे, यार दोस्तों को कभी ना नहीं कहा पर फिर भी कहीं गुम होकर रह गए।
खुद लापता रहे पर हमेशा कोशिश रही कि किसी फूल, जया या स्टेशन वाली अम्मा के चेहरे की मुस्कान बन पाएँ।