#कुंडलिया//नौटंकी
नौटंकी हर देख के , हैरान हुआ यार।
अपना समझा मान कर , निकला वो गद्दार।।
निकला वो गद्दार , प्रतिष्ठा झूठी प्यारी।
इसके आगे लाज , आदमी ने है हारी।
सुन प्रीतम की बात , हुयी है आदत संकी।
गिरगिट जैसा रूप , कहूँ लानत नौटंकी।
बातें करते सब यहाँ , बड़ी-बड़ी दिन-रात।
सत्य देख यूँ लगा , मानो हाथी दाँत।।
मानो हाथी दाँत , अनैतिक पाठ पढ़ाएँ।
मिलता मौका एक , देश को लूटें खाएँ।
सुन प्रीतम की बात , नहीं छल से घबरातें।
रावण सरिस विचार , करते राम-सी बातें।
मेरा सपना एक है , हो जाएँ जापान।
बिका हुआ ईमान पर , कैसे लूँ मैं मान।।
कैसे लूँ मैं मान , बना हर भ्रष्टाचारी।
खुदी बनूँ बलवान , रखे दूजा लाचारी।
सुन प्रीतम की बात , चार दिन रैन बसेरा।
हम सबका हो साथ , कहो मत तेरा मेरा।
मिट्टी का तू राज़ है , मिट्टी तेरा आज़।
मिट्टी बन दिन एक तू , खो देगा हर राज़।।
खो देगा हर राज़ , चत्तुराई फिर कैसी।
मिले प्रेम दो प्रेम , करो पाओ तुम वैसी।
सुन प्रीतम की बात , बजा चाहत की सिट्टी।
मानो मिट्टी रूप , अंत तेरा है मिट्टी।
#आर.एस. ‘प्रीतम’