Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Feb 2024 · 1 min read

“लाचार मैं या गुब्बारे वाला”

चढ़ाई वो रामबाजार की
था लगा चढ़ने मैं भी
गुब्बारे वाला था एक देखा
इंच तीन हो जितनी रेखा
गुब्बारा बढ़ा था लाया उसने
जो देखा न था पहले किसी ने
भीड़ जमकर लगी थी वंहा
बैठा था गुब्बारे वाला जंहा
देखकर गुब्बारे का आकार
लेने को मै भी था तैयार
आती जब तक मेरी बारी
सोच रहा था उसकी लाचारी
हो जाता होगा गुज़ारा बेचकर
खा पाता होगा कुटुम्भ पेटभर
आई जैसे ही मेरी बारी
पूछ ली पहले उसकी लाचारी
भाई? बन जाता है इससे कुछ
मानते तुम जिसे सब कुछ
जो जवाब था उसका आया
अंधकार सा था आगे छाया
लाता हूँ घर से हजार
भर देता सारा बाजार
कोशिश इतनी ही करता हूं
थैला खाली ही करता हूं
आठ से आठ बजाता हूं
दो के दस ही कमाता हूं
सुनकर था मै लगा सोचने
पाँच हजार आता दिन मे
कर रहा था मै जो ख्याल
बता रहा हूँ अपना हाल
करता मै किस बात की अक्कड़
मुझसे तो बेहतर यह अनपड़
शुद्ध लाभ यह यदि कमाये
लागत का आधा कंही न जाये
मास का कई बनता हजार
बहुत खूब है यह व्यापार
लगा था मुझे वो लाचार
था उसका ही यह संसार।।
.
………संजय कुमार “संजू”

Language: Hindi
121 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजय कुमार संजू
View all
You may also like:
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
आर.एस. 'प्रीतम'
दिल पर करती वार
दिल पर करती वार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
"फलसफा"
Dr. Kishan tandon kranti
मेरे दिल की आवाज़ के अनुसार जो आपसे बात करना नहीं चाहे या जो
मेरे दिल की आवाज़ के अनुसार जो आपसे बात करना नहीं चाहे या जो
रुपेश कुमार
दायित्व
दायित्व
TAMANNA BILASPURI
*दिल का दर्द*
*दिल का दर्द*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
शेखर सिंह
सांसों से आईने पर क्या लिखते हो।
सांसों से आईने पर क्या लिखते हो।
Taj Mohammad
ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।
ना मुझे मुक़द्दर पर था भरोसा, ना ही तक़दीर पे विश्वास।
कविता झा ‘गीत’
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
Chaahat
ସେହି ଫୁଲ ଠାରୁ ଅଧିକ
ସେହି ଫୁଲ ଠାରୁ ଅଧିକ
Otteri Selvakumar
उजड़ें हुए चमन की पहचान हो गये हम ,
उजड़ें हुए चमन की पहचान हो गये हम ,
Phool gufran
2864.*पूर्णिका*
2864.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
जब ज्ञान स्वयं संपूर्णता से परिपूर्ण हो गया तो बुद्ध बन गये।
manjula chauhan
"बेज़ारे-तग़ाफ़ुल"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
सिर्फ़ वादे ही निभाने में गुज़र जाती है
अंसार एटवी
विचार, संस्कार और रस [ तीन ]
विचार, संस्कार और रस [ तीन ]
कवि रमेशराज
World Emoji Day
World Emoji Day
Tushar Jagawat
डर अंधेरों से नही अपने बुरे कर्मों से पैदा होता है।
डर अंधेरों से नही अपने बुरे कर्मों से पैदा होता है।
Rj Anand Prajapati
मैंने खुद की सोच में
मैंने खुद की सोच में
Vaishaligoel
..
..
*प्रणय*
21 उम्र ढ़ल गई
21 उम्र ढ़ल गई
Dr .Shweta sood 'Madhu'
खुद को इतना .. सजाय हुआ है
खुद को इतना .. सजाय हुआ है
Neeraj Mishra " नीर "
ये वादियों में महकती धुंध, जब साँसों को सहलाती है।
ये वादियों में महकती धुंध, जब साँसों को सहलाती है।
Manisha Manjari
हमने ख्वाबों
हमने ख्वाबों
हिमांशु Kulshrestha
समय का निवेश:
समय का निवेश:
पूर्वार्थ
मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को
मृदा प्रदूषण घातक है जीवन को
Buddha Prakash
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
*झूठी शान चौगुनी जग को, दिखलाते हैं शादी में (हिंदी गजल/व्यं
Ravi Prakash
मुझे  पता  है  तू  जलता  है।
मुझे पता है तू जलता है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बेटियाँ
बेटियाँ
Raju Gajbhiye
Loading...