लाचारी
अगर यूँ ही होता है
तो बताओ,मुझसे
सहन क्यों नहीं होता है
मेरा हर अश्रु ,क्यों
मेरे उर का
हर बोझ ढोता है
दुनिया के दस्तूर का
मुझे वास्ता न दो….
कुदरत का नियम है
ये भी न कहो…..
अगर सब निभाते हैं
तो कहो, मुझसे
निभता क्यों नहीं है
मिलना,मिलकर बिछड जाना
और फिर अनंत पीड़ा
असहनीय दर्द…..
जानती हूं मैं
यही तो नए युग का
आगाज़ है
जीवन का आधार है…..
फिर भी बोलो
मेरा दिल रोता
क्यों ज़ार ज़ार है।।