लाइब्रेरी और उनकी किताबो में रखे जीवन
खूबसूरत होना क्या है?
क्या इसकी कोई सटीक परिभाषा है ?
और क्यों ज़रूरी है परफेक्ट होना ?
कहीं सुना था…
“Beauty lies in eyes of Beholder”
लेकिन सभी आँखें एक तरह की तो नहीं होती हैं न, हमें देखने वाली कई आँखें प्रशंसा करती हैं तो कई हममें कमियाँ भी निकालती हैं।
ओ लड़कियों सुनो, कोई चाह कर भी सबकी कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता है।
कई बार तो प्रसिद्ध हस्तियों को भी क्रिटिसिज़्म का सामना करना पड़ता है । जबकि वह एक कुशल मुकाम पर होते हैं।
इसलिए अब हमको भी स्नेहपूर्वक वसीम बरेलवी साहब की तरह यह कहना सीखना होगा कि …
“अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे”
यह समय अपनी खूबसूरती का मापदंड स्वयं तय करने का है। हम स्वयं को किस तरह अच्छे लगते हैं यह बात सबसे ज्यादा ज़रूरी है। और इन सबके साथ कभी कुछ छोटी-मोटी नादानियाँ कर लेना, जानबूझ कर थोड़ी गलतियाँ कर लेना और अपने मन से खुलकर जी लेना कोई बुरी बात नहीं…
और यदि कभी मन ख़राब हो तो उसे ठीक करने के लिए बहुत सारी किताबें, एक कप कॉफी, कुछ गाने, तमाम बिखरी पड़ी कविताएं और कहानियाँ, कभी कभार बारिश में भीग लेना, शीशे के सामने खड़े होकर नाच लेना और पूरी तरह ख़ुद को समय देना जैसे ऑप्शन तो हैं ही।
निर्मल वर्मा साहब का कहा हुआ यह कथन इस सन्दर्भ में भी एकदम फिट बैठता है कि…
“इस दुनिया में जाने कितनी दुनियाएँ खाली पड़ी रहती हैं फिर भी लोग गलत जगह रहकर सारा जीवन गँवा देते हैं।”
यहाँ इतनी अलग अलग तरह की किताबें बिखरी पड़ी हैं जिन्हें एक जीवन काल में हम कभी भी समाप्त नहीं कर पाएंगे। लेकिन लगातार पढ़ते रहने की ललक हमारे दिमाग़ को विकसित कर, समझ के नए अयाम उत्पन्न करने में मदद ज़रूर करेगी।
#लाइब्रेरी के अंदर के भावना और कितनी किताबे और कितने इंसान के जीवन किताबो में