लहू का कतरा कतरा
यूँ तो बेशुमार वतन परस्त है पूरे हिन्दोस्तां में।
सच्चे वफादार कभी जताते नहीं अपने मुँह से।
बयानबाजी तो हर कोई कर सकता है जितना जी चाहे,
मगर परवान वतन पर चढ़ता है कोई-कोई।
सिपाही खामोशी से मिट जाते है वतन पर अपने,
बाद में दुनिया उनके किस्से बयां करती है।
फतह हुई तो सलाम और इकबाल होता उनका,
वरना शहीदों में अपना नाम अमर हैं करते।
हिफाजत वतन की कम नहीं किसी इबादत से।
जुबानी हो नहीं सकती मादर ए वतनकी खिदमत ।
कोई दीवाना ही निकल पड़ता जान हथेली पे लेके।
उसे खयाल कहाँ कौन है कारवां में उसके पीछे।
उठो आदाब करो अपने उन जवानों को,
देश को दे दिया जिसने लहू का कतरा कतरा।
सतीश सृजन, लखनऊ.