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17 May 2024 · 1 min read

लहर

लहर चल पड़ी है, नक्कालों की,
चापलूसों की और चालाकों की।
नकल करना ही भाता है उन्हें,
नया करना नहीं लुभाता उन्हें।

काम करने की आदत छूट गई,
हदों में रहने की शैली छूट गई।
खाली थाली खुद ही भर जाए,
कुछ ऐसा चमत्कार ही हो जाए।

इच्छायें है अनन्त, पूरी हो जाएं,
बैठे बिठाये ही काम पूरे हो जाएं।
सवा रुपये का प्रसाद चढ़ाऊँ,प्रभु,
व्यवधान सारे अभी दूर हो जाएँ।

सीमा नहीं है कोई मक्कारी की,
पूरी करो इच्छा हर अय्याशी की।
लहर चल पड़ी है, नक्कालों की,
चापलूसों की और चालाकों की।

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