लहर तारा
सहस्त्रो से
अस्त्रो से
नदी खेत भरे
कजरी के मौन
लहलहाते बाली
के नीले वस्त्रो से
धूप छनकर
रात ढलकर
रूप खिलकर
निहारती
सभा को
बारिश का
घूंट पीकर
तीर तन पर
नीर छनकर
क्षीर धर पर
गिर रही
गम्भीर
रेशम से
ओंठ सीकर
नाव बंधी
गैल तानी
खींचें रस्से
की बेसुध
तीर उन्मुक्त
भर रही धरती
असीम
करन कोविंद