लहरों पर होकर सवार!चलना नही स्वीकार!!
आंधी आए या तूफान, डटे रहते जो इंसान,
लहरों पर होकर सवार,चलना नही उन्हें स्वीकार;
धूल कण हो या गारा मिट्टी, हवा के झोंकों में उडने लगती,
वे मर कर मिट्टी में मिल जाने को तैयार!
भेड बकरी की तरह मीमिया कर जीना है बेकार,
भीख में मिलने वाले टुकडों पर पलकर मिलती है दुत्कार,
अपने खून पसीने की मेहनत से मिल जाये जो पगार,
उसी में अपने घर परिवार की दिन चर्या को संवार,
,तभी मिलेगी संतुष्टि, मान सम्मान और आदर सत्कार!
सब दिन एक से नही रहते, और ना रहें हैं,
अपनी मेहनत के बल पर कितनों ने नये सोपान गढे हैं,
किस्मत को कोसते कोसते बीत गई जिन्दगी,
एक वो है जिन्होंने अपनी किस्मत खुद बदल द,!
हवाओं के साथ बह जाना होता थोड़ा आसां,
पर ख्याल रहे हवाएं बेवफा होकर छोड़ जाएं,
फिर संभलने का अवसर मिले या न मिलें,
तब पछतावे के रहते हैं सदा गिले शिकवे,
जानले क्यों मेहरबां है, ये सरकार,
लहरों पर होकर सवार चलना नहीं स्वीकार!!