लहराती उमंग
स्वरचित कविता
लहराती उमंग
ये मंद हंसी
जो लब पे उस के आई
दिल में हुई गुदगुदी
एक उमंग सी लहराई ।
मीठी बात है प्रीतम की
या पुरानी याद आई
मन की सरलता देख
या तो खुद ही भरमाई ।
रास्ता लंबा था पर
पल में कट गया
सामने बैठी हसीना जो
मन ही मन मुसकाई।
कितना दूभर है ज़िंदगी में
किसी को हँसते देखना
इस हलचल की दुनिया में
अपना हो कर भी जैसे खो गया कोई अपना ।
आओ इकरार करें
मन का इज़हार करें
हर खुशी से सरोकार करें
ये दुनियाँ तो हम से ही है
सब का सत्कार करें ।
विनीता नरूला