ललकार
अवाम की नींद हराम करके
ये हाकिम कैसे सो सकते हैं?
हल्ला बोल!
गुलामी तो एक लानत ठहरी
इसे हम कितना ढ़ो सकते हैं?
मुंह खोल!
क़ौमी यक-जेहती की राह में
वे कांटे कब तक बो सकते हैं?
साथ डोल!
वतन को नीलाम करने वाले
वतन-परस्त कैसे हो सकते हैं?
उन्हें तोल!
Shekhar Chandra Mitra
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