लम्हों की खता
लम्हों की खता
लम्होंकी खता जिंदगी ले जाती हैं
हंसना भी चाहो पर जिंदगी रुलाती हैं
क्यों किया इश्क क्यों दिल का दर्दं लिया
क्यों जुड़े तुझसे क्यों दामन जलने दिया
क्यों रुसवाईयां ले ली,
खुशियां अपनी देके
क्यों तन्हाइयां ले ली,
कुछ हंसी मुलाकातें करके
क्यों तेरे हुए दुनिया को ही भूल के
क्यों भरोसा किया अपनो का तोड़ के
अब बस रेत ही हैं जो फिसल जाती हैं
चिंगारी ही है जो कभी भी भड़क जाती हैं
परिंदे हो गए जिसके पर ही कट गए
आशिक तो कहे गए पर हंसना भूल गए
उन लम्हों को क्या कहिए
जो जिंदगी ही ले गए
उस दीदार को क्या कहिए
जो आखें खारी कर गए
दीपाली कालरा