लम्हे
नागिन सा लहराते है
नदिया के लरजते धारे ,
सड़कों पे टहलते फिरते
बेफ़िक्री से यार सारे ,
पानी की रिमझिमी बूंदें
बहती कागज़ की कश्ती ,
फिर शाम सिंदूरी आंचल
कुछ शैतानी कुछ मस्ती ,
सुलगी हुई निग़ाह के
जो अश्क़ से जीत गए ,
रूह को सुकूं से भरते
वो लम्हे जो बीत गए l