लम्हे की जिंदगी
लम्हे की जिंदगी
एक लम्हे की जिंदगी, एक लम्हे की ख़ता ।
ग़म सहने की खुदा,कर तू तौफीक अता।
बिछड़ने वाले ने एक बार मुड़ कर नहीं देखा
ऐसी भी क्या थी नाराजगी ,थोड़ा तो बता।
भूलने भुलाने का सिलसिला क्यों हो बाकी
ताल्लुक खत्म है तो , क्यों रहे ये राबता।
महफूज़ समझते थे खुद को उनके दिल में
लगाया किसी और से ,दिखाया बाहर का रास्ता।
इज्तिराब ए शौक हमसे न पूछिए जनाब
इंतज़ार कर करके हम , रहें हैं खुद को सता।
सुरिंदर कौर