लम्हें
लम्हे पल घड़ी
बहुत ढूंढा बहुत खोजा रूठे लम्हों को
जो रेत की तरह फिसले और बीत गए।
भला कैसे भुला दूं उन लम्हों की बातों को,
ज़िन्दगी जब खुद ही परत दर परत खुली है जाती।
बहुत टटोला महीनों को और बीते सालों को,
लम्हों के क़तरे निकाले निचोड़कर तेरी यादें।
कितने ही लम्हे,हसीं पल और सुखद घड़ियां
फ़र्श पर उड़ेल डाले,अंतर्मन में जो भी थे संभाले।
लगा टकटकी हर एक लम्हें को सहेजा मैंने
बीते लम्हें हसीं भी थे और कुछ ग़मगीन भी थे।
कुछ धुंधले से हुए जाते हैं कुछ अधूरे से लगते
कुछ रंगी है इंद्रधनुष के रंगों से और कुछ स्वप्न लगते।
काश,उन लम्हों को भी जी लेती जो यूं ही बीत गए
खुद की नादानी में जिनको खोया है न जिया मैंने।
हां तुम ही मेरे सपनों के वो हसीं लम्हें हो
जिनको सिर्फ़ ख़्वाबों में जिया था मैंने।
नीलम शर्मा