लम्हें
लम्हे चंद ही थे
पर
लम्हे तो थे
वो भी तो
चंद-चंद मिलकर ही
बने थे
‘वो’तो बहुत सारे हैं
चंद नहीं हैं
पर
लम्हे भी तो
नहीं हैं
लम्हें सदियों से
प्यारे रहे हैं
समय नहीं
समय हमेशा’सम’नहीं होता
परंतु
लम्हें अपने अंदर
प्यार भरकर रखते हैं
खुशी देने के लिए
ख़ुद को
न्यौछावर कर देते हैं
समय का दिग्दर्शन
नहीं मांगते
इनमें मधुरता होती है
खुद किसी के क्षणिक
आनंद के लिए
मर मिटने का
अविचल संकल्प होता है
आखिर लम्हे हैं ये
काल से,समय से
सदा भिन्न
सिर्फ अपनी पहचान से
जाने जाते हैं
क्षणिक पहचान से
सदा अमर रहते हैं
कोसे नहीं जाते
इनकी मधुरता के लिए
समाज का हर वर्ग
समस्त आयु वर्ग
इन्हें
याद करते हुए
आनंद के लहरों में
डूबता, उतरता है।
-अनिल मिश्र