लब पे थे अल्फ़ाज़ यूँ तो दोस्ती के
लब पे थे अल्फ़ाज़ यूँ तो दोस्ती के
थे मगर अंदाज़ उनके दुश्मनी के
अब हमारे दिल में ही वो बस गये हैं
हम तो दीवाने हैं उनकी सादगी के
चोली दामन सा कभी था साथ अपना
क्यों किनारे हो गये अब हम नदी के
तीरगी से भी निभा लेते हैं लेकिन
खोजते रहते पते भी रोशनी के
‘अर्चना’ जी लेना उनमें ज़िन्दगी
पल मिलें जब जब यहाँ तुमको खुशी के
17-08-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद