लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं
लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं।
उनकी खूबसूरती बयां करते हुए।
बादल छा जाते हैं।
उनकी जुल्फ़ों को निहारते हुए।
चांद भी शरमा जाता है।
उनके हुस्न का दीदार करते हुए।
वक़्त थम सा जाता है।
उनकी आगोश में आते हुए।
दिल-ए-नादान धड़क जाता है।
उनको एक नज़र देखते हुए।
इश्क़ हमारा बढ़ जाता है।
उनकी मोहब्बत को आज़माते हुए।