लथ -पथ है बदन तो क्या?
लथ -पथ है बदन तो क्या?
काम वतन के नहीं आएंगे क्या ?
यह सत्य है कि दुश्मन की गोलियां
हमने खाई है अपनी ख़ुशी से
दुश्मन को हमने पीठ दिखाई नहीं है
सांसे चल रही है अभी भी
दिल धड़क रहा अभी भी
आगे बढ़ सकते हैं, बढ़ेंगे भी
मरकर भी जिन्दा नहीं रहेंगे क्या ?
अभी तिरंगा फहराना है मुझे
दुश्मन की छावणीयों पर
मरना होगा मर जायेंगे
देश के लिए मरने का मौका फिर मिलेगा क्या? ?
चारों ओर बदुके तनी है
गोला भी गरज रहा है
ड्रोन भी उड़ रहा है अनवरत
कब -क्या होगा कह नहीं सकते
रिस्कयु वाले अबतक आएंगे
उसकी प्रतीक्षा में नहीं रहेंगे हम
जान जाने का गम नहीं है
भारत माता की रक्षा करने का अभी भी दम है.
भारत माता पुकार रही :
“सपूतों ! शहीद होने में डर कैसा ?
वीर नहीं है कोई तुम जैसा
जो कर सकते हो अभी भी करों
जो नहीं कर सकते मत ही करों
तुम्हारे आगे भी कई वीर है
तुम्हारे पीछे भी कई वीर है
दुश्मनों का दर्प दलन करों
थोड़ा मचल लो, बन्दुक उठा लो
मेरी धरती पर अपना नाम लिख लो
एक दिन तो मरना है ही, मरोगे ही
मरने के बाद तिरंगे में लिपटा तुम्हारा बदन
तुम्हारे गाँव, तुम्हारे घर नहीं जायेगा क्या ?”
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर