लता दीदी को श्रद्धाञ्जलि
सामवेद की आराध्या वो
स्वर साम्राज्ञी स्व लोक गईं ।
दे अमिट छाप इस जग को निज
स्वर मन्दिर का नैवेद्य हुईं ।
वीणापाणि की सुता वो प्रिय
शायद थी इसी प्रतीक्षा में
वीणापाणि मां खुद आये
संग ले जाएं स्व वीक्षा में।
आज विदाई देता उनको
प्रति जनमन भीगे नयनों से ।
आज छोड देही यह तन
निकल गयी किन अयनो से ?
वो मीठा स्वर शांत सुभग सा
हर मन को औषधि सा मिला ।
शिशु की लोरी सा हुआ कहीं
कहीं प्रेमी जन आबद्ध मिला ।
ईश प्रार्थना का भी स्वर वो
करुणामय आंचल भी हुआ
कहीं हर्ष की अनुगूंजे हैं
कहीं शोकाकुल भी हृदय छुआ ।
उनका स्वर हर एक मन को
मां जैसा ही दुलराता है ।
स्वर उनका शीतल छाया सा
हर मन की थकन मिटाता है।