लड़ाई छल और हल की
मसला किसान समस्याओं के हल का है,
और मुक़ाबला ‘हल’ और ‘छल’ का है।
‘छल’ की सीधी कोई चाल नहीं होती,
‘छल’ की उम्र लम्बी हरहाल नहीं होती।
छलिया अपनी कुटिल चालें चल रहा है,
बाहर अंदर बार-बार रंग बदल रहा है।
लगा कर रखे हैं कितने मुखोटे चेहरे पर,
वक्त के साथ उतरेंगे धीरे-धीरे दर परत दर।
धैर्य ‘हल’ का ज़रूर रंग लाएगा,
‘छल’ हार कर एक दिन बिखर जाएगा।