*लड़ने से कुछ लाभ नहीं है, बुरा कहे जो कहने दो (हिंदी गजल)*
लड़ने से कुछ लाभ नहीं है, बुरा कहे जो कहने दो (हिंदी गजल)
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1)
लड़ने से कुछ लाभ नहीं है, बुरा कहे जो कहने दो
जिसकी मनोवृति है जैसी, वैसी उसकी रहने दो
2)
सहनशक्ति इतनी बढ़ जाए, क्रोधित कभी न हो पाऊॅं
दो वरदान धैर्य का मुझको, प्रभु तापों को सहने दो
3)
मक्खन जाड़ों में बर्तन का, नहीं रात में पिघलेगा
गरम धूप में रखकर उसको, केवल कुछ क्षण तहने दो
4)
युगों-युगों से निर्मल जल को लेकर नदिया बहती है
उसके मत छेड़ो स्वरूप को, जैसी है बस बहने दो
5)
बनना और बिगड़ना जग का, अति साधारण-सा क्रम है
चलो शांति से सौ वर्षों की, संरचना को ढहने दो
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रचयिता :रवि प्रकाशित
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451