लड़ने को तो होती नहीं लश्कर की ज़रूरत
लड़ने को तो होती नहीं लश्कर की ज़रूरत
एक दौर में काफ़ी थी बहत्तर की ज़रूरत
जो मेरे लिए ही हो परेशानी का बाइस
मुझको नहीं ऐसे किसी रहबर की ज़रूरत
काफ़ी है डुबाने के लिए एक ही क़तरा
किसको है जहाँ में यूँ समुंदर की ज़रूरत
शीशे के मकाँ उनको ही अच्छे नहीं लगते
जिनको है हमेशा से ही पत्थर की ज़रूरत
~अंसार एटवी