लड़के
ममता, त्याग, तपस्या और करुणा इन सब की परिभाषा होती है लड़कियां।
उन पर ही लिखी गई है
कविताएं खूबसूरती वाली,
कहानियां त्याग और संघर्ष की,
पंक्तियां तप और प्यार की
और सच में वो ऐसी ही होती है,
पर सब कहते है की
लड़के डरते नही है,
लड़के कठोर होते है,
लड़के दिखाते नहीं है मन की व्यथा,
लड़के रोते नही है।
उन की सुंदरता, उनके त्याग, समर्पण और स्नेह पर बाते तो होती है पर उनको स्वीकारा नही जाता तब उनकी तुलना लड़कियों से कर दी जाती है….
पर लड़के रोते है बिल्कुल बच्चो की तरह अपनी मां के आंचल से बिछड़ने पर , उनके बड़े हो जाने पर अगर बाबा अभी भी संघर्ष कर रहे है तो उनकी चिंता में,राखी पर बहन से जब राखी नही आती तो अपनी सुनी कलाई देख कर, जिससे बेहद प्रेम करा उसके प्रेम में अपना सब कुछ हार कर…….
पर हां वो पहाड़ की तरह कठोर होते है जो हर परिस्थिति में बिना अस्थिर हुए खड़े रहते है साथ, और अगर वो होते मोम से कोमल तो वो मुश्किलों की तपती धूप में पिघल जाएंगे इसलिए उन्होंने कबूल करा पत्थर सा कठोर होना……..
लड़के भी डरते हैं अपनी मां के आंचल से बिछड़ने के डर से,
पिघल जाते है अपने बच्चो का प्यार देख कर,
अपने सबसे सच्चे दोस्त से एक बार नही हजारों बार अपने मन की व्यथा कहते है…..
कुछ लड़के हर रोज कर रहे होते हैं त्याग, समर्पण और स्नेह की परिभाषा को साकार…..
-सोniya:)