लड़की हूं -लड सकती हूं!
एक दिन अचानक,
कही गई ये बात,
लड़की हूं लड़ सकती हूं,
यह बात है विशेष,
इसमें छिपा है एक संदेश,
ना समझो मुझे गुड़िया मोम की,
रहूंगी ना अब मैं मौन,
अब तक रही हूं,
मैं चुप,
पर अब कहती हूं,
अपने हक के लिए,
मैं भी लड सकती हूं,
समझते नहीं मैं भी तो इंसान हूं,
सिर्फ हाड़ मांस का पुतला नहीं,
जिती जागती एक मिसाल हूं,
मेरी देह में भी तो प्राण है,
मेरा भी तो एक अभिमान है,
मुझ में भी है एक चेतना,
दिल दिमाग से इसे देखना,
जो सुषुप्त रख छोड़ी थी मैंने,
परिवार के हित में अपने,
घर संसार के लिए अपने,
छोटी- मोटी दिक्कतों को,
कर के दरकिनार,
सहने लगी मैं मार,
जुल्मियों के जुल्म,
समाज के अत्याचार,
सहती रही सदैव तिरस्कार,
सहती रही हर उत्पीडन,
ना किया कभी प्रतिकार;
लेकिन अब नहीं,
मैं चुप रहूंगी,
बहुत हो चुका,
अब ना सहूंगी,
अब हर वार का होगा प्रतिकार,
अब ना सहूंगी मैं अत्याचार,
यह मत समझना,
मैं सिर्फ अबला बनी रहूंगी,
मैं दुर्गा की तरह,
काली का रूप धरुंगी,
मैं रानी लक्ष्मीबाई की तरह टूट पडूंगी,
मैं झलकारी बाई की तरह रुप धरुंगी,
मैं सिर्फ मां-बहन -पत्नि या बेटी नहीं,
मैं शक्ति स्वरूपा का भी एक रुप हूं,
मैं इस सृष्टि की सिर्फ जन्मदात्री नहीं,
मैं हर स्वरुप का प्रतिरूप हूं!
मैं कहती हूं,
हां मैं लड़की हूं,
पर अपने हक के लिए,
लड भी सकती हूं!!