लड़की नहीं है कोई चीज़
एक नाज़ुक सी कोमल सी इतराती लड़की.
अनजान इस बात से कि अपने ही बैठे हैं तैयार
करने उसकी ईज़्ज़त को तार तार
संकुचाती,घबराती,डरती सी लड़की
अपने को बचाती या कभी जाल में फंस जाती
इस बात से अनजान की नज़र गड़ाये बैठे हैं शैतान
कि कुछ ही पल में बिखर जायेंगे अरमान
अपने को बचाती,संकुचाती, सहमी सी लड़की
प्रश्न उसके माता पिता से..
क्यों हैं वो बेटी की व्यथा से अनजान
क्यों नहीं बता पाती वो बातें वो तुमको
जो करती हैं उसे परेशान
एक प्रश्न उन वहशी दरिंदों से
क्या एक बार भी नहीं आया मन में
अपने होने का ज़रा भी ख्याल
क्या एक बार भी नहीं उमड़ा मन में
अपने ही रिश्ते के लिये थोड़ा सा भी प्यार
क्यों इंसान बन बैठा अपनी हवस में
यूं अपनी ही बहन बेटी के लिये शैतान
क्या कभी भूल पायेगी लड़की
ये घिनौनी बातें..वो कड़वी यादें
क्या निकल पाती होगी कभी वो
आत्मग्लानि के गहरे दलदल से
यूं मन में कुढती सी घुटन भरी सी
ज़िन्दगी जीने को मज़बूर वो प्यारी सी लड़की
मन में कडवे अतीत को लेकर
जीवन में आगे बढ़ती हुई लड़की
देखो तो फिर भी हिम्मत वे वहशी
किस हक से कह पायेंगें उसे अब फिर से बेटी
रिश्तो की मर्यादा तार तार हुई
तब ज़रा भी शर्म नहीं आयी
क्या क्षमा मांगने की कभी मन में भी आयी ?
कैसे अब उनको रिश्तो की याद है आयी ?
काश ! उनके भी घर में जन्म ले एक लड़की
ईज़्ज़त क्या होती है..समझाये उन्हें खुद की ही बेटी
सच्चा प्यार क्या होता है महसूस कराये
उन्हें अब खुद की ही बेटी
उनको उनका अपराध बोध कराये
उनकी अपनी ही बेटी
यही है बदला..यही है उनका प्रायश्चित्
सोचती, खुद को समझाती..घुटती मरती..त्याग की वो मूरत सी लड़की
नहीं होती है लड़की कोई चीज़
समझ लो ए दुनिया वालों
होती है वो भी इंसान..मत करो यूं परेशान
मत समझो उसे कमज़ोर
त्याग की गर वो मूरत है तो दुर्गा का भी रूप है वो
नारी से ही जन्म लिया है..नारी ने ही दिये संस्कार
नारी का ही करते हो अपमान
ये कैसा है मान सम्मान
ऐसे नहीं बन सकता मेरा भारत महान
©® अनुजा कौशिक