+++ लजीज पकवान +++
लजीज पकवान
// दिनेश एल० “जैहिंद”
हँसता-खेलता मेरा परिवार ।
अपना है यही छोटा संसार ।।
आठ लोगों की छोटी गृहस्थी ।
पूरे गाँव में कुछ रखती हस्ती ।।
माँ को गर्म आलू-पराठे भाते ।
बापू तो आज भी सत्तू खाते ।।
ताला कभी मुँह पे ना होता ।
पेट इनका कभी नहीं सोता ।।
भूख के मारे सभी छटपटाते ।
कहने वाले भुक्खड़ कह जाते ।।
बड़ा बेटा मेरा पेटू कहलाता ।
उसको सिर्फ़ गुलगुल्ला भाता ।।
कभी-कभी वह नाच लगाता ।
तब तो वह खीर-पूड़ी खाता ।।
शनिवार हो या हो रविवार ।
छोटी बेटी खाती है अचार ।।
जब कभी भी वह रूठ जाती ।
फिरतो वो छोले-भटूरे खाती ।।
पत्नी रखती भोजन का शौक ।
दाल बनाती खूब छौंक-छौंक ।।
आज भी चोखा व भात खाती ।
बडे-मन से बेसन-कढ़ी बनाती ।।
जरा भी शर्म उसको ना आती ।
कढ़ी -पराठे फिर खूब दबाती ।।
अपना हाल यार बड़ा बेहाल ।
हम भी खाते खूब रोटी-दाल ।।
हमको प्याज के पकौड़े भाते ।
गैस का मारा हम नहीं खाते ।।
==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
11. 11. 2017