Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Dec 2022 · 3 min read

■ घरेलू_वृत्तांत

#लघु_वृत्तांत
■ हमारी गिल्लो
◆कृतज्ञता से आत्मीयता तक◆
【प्रणय प्रभात】
सामान्यतः “गिलहरी” एक संकोची जीव है। जो मानवीय समाज के बीच रहते हुए भी मनुष्य से दूरी बनाए रखती है। इसके बाद भी इनका रिश्ता कुछ जगहों, कुछ लोगों से जुड़ ही जाता है। जो साबित करता है कि ‘कृतज्ञता” के मामले में जीव-जंतु इंसानों से ज़रा भी पीछे नहीं हैं। वो इंसानी मंशा को परखने की क्षमता भी खूब रखते हैं। साथ ही कुछ के प्रति आत्मीय भी हो सकते हैं। इसी का एक प्रमाण है एक गिलहरी। जो अपने दो बच्चों के साथ हमारी छत को दिन भर अपना ठिकाना बनाए रहती थी। बीते 14 महीने में उसे व उसके तेज़ी से बढ़े कुटुंब को अपने आसपास हमारी मौजूदगी से फ़र्क़ पड़ना भी लगभग बन्द सा हो गया है। अब गिल्लो खानदान में दो छोटे बच्चों सहित क़रीबन 8 सदस्य हैं। सभी की आमद बेनागा सुबह से शाम के बीच छत पर बने आशियाने से बालकनी तक होती रहती है। अब वो न केवल क़रीब बैठ कर सब तरह की चीज़ें खा लेती है बल्कि शरीर के किसी भी हिस्से पर चढ़ कर भी निकल जाती है। गिलहरी का हमारे प्रति यह भाव मात्र तीन माह में विकसित हुआ। दरअसल पिछली दीपावली से पहले वो गर्भवती थी। उसने हमारी निर्माणाधीन छत पर रखी ईंटों के बीच अपना आशियाना बनाया। दो बच्चों को जन्म भी दे दिया। इसका पता तब चला जब बेलदार (श्रमिक) ने ईंट उठाई। उसे वहाँ दो बच्चे नज़र आए। गिलहरी तब शायद भोजन पानी के जुगाड़ में गई हुई थी। बेलदार ने हमें यह जानकारी दी। हमने न सिर्फ़ उस हिस्से की दीवार का काम रोक दिया, वरन ईंटों को हटाने पर भी रोक लगा दी। प्रसूता गिलहरी की ख़ुराक़ के लिए बादाम और अखरोट की गिरियां रखना हमारी नित्य क्रिया का हिस्सा बन गया। बाद में चने, मटर, मक्का व मूँगफली के दाने गिलहरी के ठिकाने के आसपास बिखेरे जाने लगे। इससे पहले ईंटों के बीच की जगह पर कपड़े की कुछ कतरनें भी रखवाई गईं। ताकि कार्तिक माह की ठंड से बच्चों की सुरक्षा हो सके। इन छोटे-छोटे प्रयासों के बीच बच्चे भी बड़े हो गए। जो दिन भर फुदकते दिखाई देने लगे। हमे एक आत्मिक संतोष सा मिलने लगा। उनका कुटुम्ब बढ़ने लगा। सभी से परिवार के सदस्य जैसा नाता बन गया है।सबसे अच्छे दोनों छोटे बच्चे हैं। जो सुबह धूप निकलते ही जोड़े से आ जाते हैं और ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर के समय ऐसे प्रकट होते हैं मानो कुदरत ने दिमाग़ में कोई अलार्म सेट कर रखा हो। अच्छी बात यह है कि सब अन्य चीजें भी चाव से खाने लगे हैं। जिसमे रोटी, परांठा, पूरी, कचौरी, मिठाई से लेकर खीर तक शामिल है। पहले लगता था कि जब मूँगफ़ली का सीजन चला जाएगा, तब वे क्या खाएंगे। कुछ ही समय बाद श्राद्ध-पक्ष और त्यौहारी सीजन के दौरान पता चला कि मैडम चटोरी हैं। जिन्हें पूरी-कचौरी और मिठाई के स्वाद की समझ भी पूरी-पूरी है।
इन दिनों उन्हें बाजरा भी बहुत भा रहा है। जो हम गौरैया के लिए रखते हैं। पीली चोंच वाली चिड़ियाओं से लेकर गौरैयाओं के झुंड के बीच खाने को लेकर खींच-तान दोपहर तक चलती है। बीच बीच मे बंदरों का दल उनकी मूंगफलियों पर हाथ साफ कर जाता है। कुल मिलाकर घर एक उपवन सा लगने लगा है। जहां बीच-बीच मे ट्रैफिक पुलिस की सींटी जैसी आवाज़ें सुनाई देती रहती हैं। दोनों बच्चों के बाहर चले जाने के बाद घर व जीवन मे एक सूनापन लगने लगा था। जिसे गिलहरी और उसके बच्चों ने रौनक देने का काम किया है। थोड़ी सी सेवा के बदले आत्मीय लगाव की यह मेवा कोई छोटी बात नहीं। जिओ हमारी गिल्लो रानी और इल्लू-बिल्लू सहित गिल्लूदास व बच्चूदास। राम जी की कृपा से हमेशा ऐसे ही फुदकते रहो।
#जय_सियाराम।।
✍🏻😍✍🏻😍✍🏻😍✍🏻😍✍🏻

1 Like · 222 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
या इलाही फ़ैसला कर दे….
या इलाही फ़ैसला कर दे….
parvez khan
मैं उन लोगों से उम्मीद भी नहीं रखता हूं जो केवल मतलब के लिए
मैं उन लोगों से उम्मीद भी नहीं रखता हूं जो केवल मतलब के लिए
Ranjeet kumar patre
खींच रखी हैं इश्क़ की सारी हदें उसने,
खींच रखी हैं इश्क़ की सारी हदें उसने,
शेखर सिंह
दोहा ग़ज़ल
दोहा ग़ज़ल
Mahendra Narayan
.... कुछ....
.... कुछ....
Naushaba Suriya
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
अब आदमी के जाने कितने रंग हो गए।
सत्य कुमार प्रेमी
जलियांवाला बाग
जलियांवाला बाग
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
" शब्द "
Dr. Kishan tandon kranti
होता है तेरी सोच का चेहरा भी आईना
होता है तेरी सोच का चेहरा भी आईना
Dr fauzia Naseem shad
बचपन
बचपन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
तुम और मैं
तुम और मैं
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
*दशरथ के ऑंगन में देखो, नाम गूॅंजता राम है (गीत)*
*दशरथ के ऑंगन में देखो, नाम गूॅंजता राम है (गीत)*
Ravi Prakash
इंसानियत
इंसानियत
साहित्य गौरव
अ
*प्रणय*
तेरा साथ है कितना प्यारा
तेरा साथ है कितना प्यारा
Mamta Rani
सुकून
सुकून
इंजी. संजय श्रीवास्तव
जब तक जेब में पैसो की गर्मी थी
जब तक जेब में पैसो की गर्मी थी
Sonit Parjapati
गद्दार है वह जिसके दिल में
गद्दार है वह जिसके दिल में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
लिखते हैं कई बार
लिखते हैं कई बार
Shweta Soni
अगर आपको जीवन मे सुख, आंनद, शांति चाहिये तो कभी आप श्मशान घा
अगर आपको जीवन मे सुख, आंनद, शांति चाहिये तो कभी आप श्मशान घा
रुपेश कुमार
3074.*पूर्णिका*
3074.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है; जिसका जवाब चाहिए,
मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है; जिसका जवाब चाहिए,
पूर्वार्थ
ग्रन्थ
ग्रन्थ
Satish Srijan
गृहस्थ-योगियों की आत्मा में बसे हैं गुरु गोरखनाथ
गृहस्थ-योगियों की आत्मा में बसे हैं गुरु गोरखनाथ
कवि रमेशराज
इस तरफ न अभी देख मुझे
इस तरफ न अभी देख मुझे
Indu Singh
आत्ममुग्धता अर्थात् आत्महत्या
आत्ममुग्धता अर्थात् आत्महत्या
Sonam Puneet Dubey
सीख गुलाब के फूल की
सीख गुलाब के फूल की
Mangilal 713
कहां गयी वो हयादार लड़कियां
कहां गयी वो हयादार लड़कियां
shabina. Naaz
जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण
Neeraj Agarwal
Loading...