■ घरेलू_वृत्तांत
#लघु_वृत्तांत
■ हमारी गिल्लो
◆कृतज्ञता से आत्मीयता तक◆
【प्रणय प्रभात】
सामान्यतः “गिलहरी” एक संकोची जीव है। जो मानवीय समाज के बीच रहते हुए भी मनुष्य से दूरी बनाए रखती है। इसके बाद भी इनका रिश्ता कुछ जगहों, कुछ लोगों से जुड़ ही जाता है। जो साबित करता है कि ‘कृतज्ञता” के मामले में जीव-जंतु इंसानों से ज़रा भी पीछे नहीं हैं। वो इंसानी मंशा को परखने की क्षमता भी खूब रखते हैं। साथ ही कुछ के प्रति आत्मीय भी हो सकते हैं। इसी का एक प्रमाण है एक गिलहरी। जो अपने दो बच्चों के साथ हमारी छत को दिन भर अपना ठिकाना बनाए रहती थी। बीते 14 महीने में उसे व उसके तेज़ी से बढ़े कुटुंब को अपने आसपास हमारी मौजूदगी से फ़र्क़ पड़ना भी लगभग बन्द सा हो गया है। अब गिल्लो खानदान में दो छोटे बच्चों सहित क़रीबन 8 सदस्य हैं। सभी की आमद बेनागा सुबह से शाम के बीच छत पर बने आशियाने से बालकनी तक होती रहती है। अब वो न केवल क़रीब बैठ कर सब तरह की चीज़ें खा लेती है बल्कि शरीर के किसी भी हिस्से पर चढ़ कर भी निकल जाती है। गिलहरी का हमारे प्रति यह भाव मात्र तीन माह में विकसित हुआ। दरअसल पिछली दीपावली से पहले वो गर्भवती थी। उसने हमारी निर्माणाधीन छत पर रखी ईंटों के बीच अपना आशियाना बनाया। दो बच्चों को जन्म भी दे दिया। इसका पता तब चला जब बेलदार (श्रमिक) ने ईंट उठाई। उसे वहाँ दो बच्चे नज़र आए। गिलहरी तब शायद भोजन पानी के जुगाड़ में गई हुई थी। बेलदार ने हमें यह जानकारी दी। हमने न सिर्फ़ उस हिस्से की दीवार का काम रोक दिया, वरन ईंटों को हटाने पर भी रोक लगा दी। प्रसूता गिलहरी की ख़ुराक़ के लिए बादाम और अखरोट की गिरियां रखना हमारी नित्य क्रिया का हिस्सा बन गया। बाद में चने, मटर, मक्का व मूँगफली के दाने गिलहरी के ठिकाने के आसपास बिखेरे जाने लगे। इससे पहले ईंटों के बीच की जगह पर कपड़े की कुछ कतरनें भी रखवाई गईं। ताकि कार्तिक माह की ठंड से बच्चों की सुरक्षा हो सके। इन छोटे-छोटे प्रयासों के बीच बच्चे भी बड़े हो गए। जो दिन भर फुदकते दिखाई देने लगे। हमे एक आत्मिक संतोष सा मिलने लगा। उनका कुटुम्ब बढ़ने लगा। सभी से परिवार के सदस्य जैसा नाता बन गया है।सबसे अच्छे दोनों छोटे बच्चे हैं। जो सुबह धूप निकलते ही जोड़े से आ जाते हैं और ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर के समय ऐसे प्रकट होते हैं मानो कुदरत ने दिमाग़ में कोई अलार्म सेट कर रखा हो। अच्छी बात यह है कि सब अन्य चीजें भी चाव से खाने लगे हैं। जिसमे रोटी, परांठा, पूरी, कचौरी, मिठाई से लेकर खीर तक शामिल है। पहले लगता था कि जब मूँगफ़ली का सीजन चला जाएगा, तब वे क्या खाएंगे। कुछ ही समय बाद श्राद्ध-पक्ष और त्यौहारी सीजन के दौरान पता चला कि मैडम चटोरी हैं। जिन्हें पूरी-कचौरी और मिठाई के स्वाद की समझ भी पूरी-पूरी है।
इन दिनों उन्हें बाजरा भी बहुत भा रहा है। जो हम गौरैया के लिए रखते हैं। पीली चोंच वाली चिड़ियाओं से लेकर गौरैयाओं के झुंड के बीच खाने को लेकर खींच-तान दोपहर तक चलती है। बीच बीच मे बंदरों का दल उनकी मूंगफलियों पर हाथ साफ कर जाता है। कुल मिलाकर घर एक उपवन सा लगने लगा है। जहां बीच-बीच मे ट्रैफिक पुलिस की सींटी जैसी आवाज़ें सुनाई देती रहती हैं। दोनों बच्चों के बाहर चले जाने के बाद घर व जीवन मे एक सूनापन लगने लगा था। जिसे गिलहरी और उसके बच्चों ने रौनक देने का काम किया है। थोड़ी सी सेवा के बदले आत्मीय लगाव की यह मेवा कोई छोटी बात नहीं। जिओ हमारी गिल्लो रानी और इल्लू-बिल्लू सहित गिल्लूदास व बच्चूदास। राम जी की कृपा से हमेशा ऐसे ही फुदकते रहो।
#जय_सियाराम।।
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