#लघुकविता-
#लघुकविता-
■कल भी, आज भी।
“हम अंधियारों के दामन पर,
रोशन उजियारे लिखते हैं।
कुछ अठखेली कर लेते हैं,
कुछ नग़्मे प्यारे लिखते हैं।।
थी एक पोटली उम्र भरी,
जो खूंटी पर लटका दी है।
कल भी अंगारे लिखते थे,
अब भी अंगारे लिखते हैं।।”
【प्रणय प्रभात】