#लघुकविता-
#लघुकविता-
■ देख लिया ना…?
[प्रणय प्रभात]
देख लिया ना…?
अपनों को बेगाने होते,
घर-आंगन वीराने होते।
आँखों के पानी को मरते,
आशाओं को आहें भरते।
अपनेपन को नीर बहाते,
दम्भ-द्वेष को रास रचाते।
छल को झूठे किस्से गढ़ते,
दूरी की खाई को बढ़ते।
देख लिया ना…?
😢☺️😢☺️😢☺️😢☺️😢
#आत्मकथ्य-
निस्संदेह, आज यह एक लघु कविता ही है, लेकिन इसके विस्तार की संभावनाएं भी कम नहीं। सम्भव है, कल उक्त पंक्तियां एक बड़ी कविता का एक अंश बन जाए। आज के विकृत व विसंगत परिवेश में।
-सम्पादक-
[न्यूज़&व्यूज़]
श्योपुर (मप्र)