#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ संख्या की सच्चाई…।
【प्रणय प्रभात】
एक क़रीबी मित्र की बेटी के विवाह में उपहार के रूप में डिनर-सेट देने का विचार बना। खरीदने के लिए दुकान पर पहुंचा और दुकानदार से अच्छा सा डिनर-सेट दिखाने को कहा। उसने तत्काल दो कम्पनियों के दो पैक लाकर काउंटर पर रख दिए।
दोनों में एक पैक कुछ बड़ा और आकर्षक था। कम्पनी का नाम भी जाना-पहचाना था। पैक पर सेट में शामिल बर्तनों की कुल संख्या 40 लिखी थी। पूछने पर पता चला कि उसकी क़ीमत 2500 रुपए थी। जिस पर 10 फीसदी डिस्काउंट भी मिलना था।
दूसरा किसी नई कंपनी का था। आकार में थोड़ा छोटा और आकर्षण में पहले वाले की तुलना में कुछ हल्का। सेट में बर्तनों की कुल संख्या 25 थी और क़ीमत 2300 रुपए। वो भी फिक्स, यानि नो डिस्काउंट।
मामला वाकई कुछ अजीब सा था। पैक की क्वालिटी और बर्तनों की क्वांटिटी के आधार पर दाम संशय में डालने वाले थे। अपने इस भ्रम को दूर करने के लिए दुकानदार से सवाल करना पड़ा। इसके बाद जो सच सामने आया उसने खोपड़ी को ठिकाने पर लाने का काम किया।
दुकानदार ने बिना झिझक साफ किया कि माजरा क्या है। उसने बताया कि पहले पैक के 40 नग 24 छुरी-कांटों और चम्मचों को मिला कर हैं। जबकि दूसरे पैक में चम्मचों की कुल संख्या मात्र आधा दर्ज़न है। जबकि बाक़ी बर्तन पहले पैक के बर्तनों से बड़े हैं। बचा-खुचा अंतर केवल पैकिंग का है। जिसकी वजह से पौक बड़ा लग रहा है।
सच सामने आ जाने के बाद संशय की कोई गुंजाइश थी ही नहीं। मैने तुरंत भ्रम के मायाजाल से बाहर आते हुए छोटे सेट को पैक करने का ऑर्डर दे दिया। समझ मे आ चुका था कि बड़े ब्रांड डिस्काउंट और चमक-दमक की आड़ में कितना ठगते आए हैं और कैसे…? बात सब की समझ में आएगी, समझना चाहेंगे तो।।
#स्पष्टीकरण-
(यह कथा पूरी तरह मनगढ़ंत है, जिसका राजनीति, चुनाव या ठगबंधन जैसे चोंचलों से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है)
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)