#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ हो गया कल्याण…!
【प्रणय प्रभात】
नव-विकसित कॉलोनी में नया-नया आबाद हुआ था वो परिवार। आसपास के परिवारों से मेल-जोल बाक़ी था। बावजूद इसके पूरी कॉलोनी में चर्चे ज़रूर थे इस परिवार के। वजह थी “राधे-कृष्णा” सहित कभी “राधे” तो कभी “कृष्णा” के स्वर। जो सुबह तड़के से आधी रात तक गूंजते थे। कभी हल्की तो कभी तेज़ आवाज़ में। आवाज़ भी किसी एक की नहीं, लगभग हरेक की होती थी।
आवाज़ों को सुन कर लगता था कि कॉलोनी को इतना धर्मप्रेनी परिवार पहली बार मिला है। परिवार से निकटता बढाने को अधिकांश परिवार बेताब थे। सभी को प्रतीक्षा थी एक उचित अवसर की। संयोग से यह अवसर तीसरे ही महीने आ गया। प्रसंग था कॉलोनी के बीचों-बीच बने मंदिर में प्रतिमाओं की स्थापना और प्राण-प्रतिष्ठा का। प्रबंधों के साथ धन-संग्रह में जुटे सारी बस्ती के नुमाइंदों की सबसे बड़ी आस उक्त परिवार पर टिकी थी।
अच्छे-ख़ासे आर्थिक सहयोग के साथ मेल-जोल बढ़ने की उम्मीदें भरपूर थीं। सारी उम्मीदें चारों खाने चित्त तब हो गईं जब परिवार के मुखिया ने अपने नास्तिक होने की जानकारी कमेटी के सदस्यों को पहली ही भेंट में बिना किसी हिचक के दी। चंदा न मिलने से अधिक झटका परिवार की श्रद्धा को लेकर बने भ्रम को लगा था।
कुछ ही देर बाद घर से आती आवाज़ों के पीछे के सच का खुलासा भी हो गया। पता चला कि परिवार में दो नौकरानियां भी शामिल हैं। दोनों सगी बहनें हैं। जिनमें एक का नाम राधे और दूसरी का नाम “कृष्णा।” अब सारा मोहल्ला “हरे-हरे” की जगह “राम-राम-राम” कर अपनी भड़ास निकालता दिखाई दे रहा है।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)