#लघुकथा
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■ स्पेशल बर्फी…
【प्रणय प्रभात】
कम से कम आठ से दस दिन पुरानी होंगी वो दस तरह की मिठाइयां। वज़न में लगभग 30-35 किलो के आसपास। इनमें बासी पेड़े, बर्फी, गुलाबजामुन से लेकर जलेबी, इमरती, बालूशाही तक सब थीं शायद। वो भी छोटे-छोटे टुकड़ों में। जिन्हें गैस भट्टी पर चढ़े भारी-भरकम लोहे के कढ़ाव में लकड़ी के हथोड़ानुमा पात्र से घोंटा जा रहा था।
पास ही चॉकलेट पाउडर का पैक और खाने के रंग का पाउच रखा हुआ था। पता चला कि आज त्यौहारी सीज़न के लिए दुरंगी, तिरंगी, चॉकलेटी जैसी स्पेशल बर्फी बनाई जा रही है। पता भी इसलिए चल पाया कि गंदी हथेली से पसीना पोंछ-पोंछ कर कढ़ाव में घोंटा देने वाला बड़बोला कारीगर पढा-लिखा नहीं था। ना ही उसे खाद्य और स्वास्थ्य विभाग के किसी नियम की जानकारी थी। दुकान का मालिक मिठाई विक्रेता भी संयोगवश कारखाने पर मौजूद नहीं था।
वरना खाद्य-सुरक्षा के सारे विधानों को भट्टी में झोंक कर बनाई जा रही स्पेशल बर्फी की उस रेसिपी का कारखाने की चारदीवारी से बाहर आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, जो मिठाई विक्रेता को दो साल में फर्श से अर्श पर पहुंचा चुकी थी। साथ ही विभागीय अधिकारियों की आर्थिक समृद्धि का कारण बन चुकी थी।
आखिर सरकारी कारिंदों को भी पता है कि ऐसी मिठाई का देश के आर्थिक व आजीविका विकास में बड़ा योगदान है। ऐसी स्पेशल मिठाइयों की वजह से ही डॉक्टर्स की दुकाने और लैब्स चल रही हैं। मेडीकल स्टोर्स फर्राटा भर रहे हैं और देश की जीडीपी बढ़ रही है। साथ ही जनसंख्या में कमी आने की राह आसान हो रही है। यह कोई छोटी-मोटी बात है?
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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