लघुकथा
परोपकार
एक बुढ़िया थी् वो अकेले रहती थी उसकी एक बेटी थी ।उसका विवाह
हो चुका था वो अमेरिका में रहती थी
उसका अपनी माँ के पास आना कम ही होता था् बुढ़िया अपनी बेटी को याद करके बहुत दुखी होती थी।
कहती बेटी काआना ही नही हो पाता
ज्योति नाम की लड़की बगल वाले घर
में रहती थी बूढ़ी अम्मा को खाना भी देती ज्योतिकहा करे अम्मा आप परेशान न हो् में भी बेटी जैसी ही हुं।
मुझसे जो बनेगा में आपकी मदद करूंगी एक दिन अम्मा को बहुत तेज
बुखार आया।जिस कारण अस्पताल में
बहुत दिनो तक रहना पड़ा् अम्मा ने देखा ज्योति ने मेरी कितनी देखभाल की है।अम्मा ज्योति की सेवा से बहुत
खुश हुई और कहने लगी तुम बहुत महान हो ज्योति ने कहा अम्मा परोपकार करना हर इन्सान काधर्म है।
यही इन्सानियतहै दूसरों का उपकार करना यही सबसे बड़ा परोपकार है।
सुषमा सिंह