लघुकथा
लघुकथाःचमचे
आज घर में समारोह था।मंगलगीत गाये जा रहे थे।स्वादिष्ट व्यंजनों से पात्र भरकर पंडाल में रखे जा रहे थे। पात्रों से भीनी -भीनी सुगंध आ रही थी।
जैसे ही भोजन प्रारंभ हुआ,एक साथ बहुत से चमचे खीर के पात्र में डाले जाने लगे।खीर का पात्र यह देख बाकी व्यंजनों वाले पात्रों की ओर देख कर गर्व से मुस्कुराया..और बोला,”देखा तुमने! कितने चमचे मेरे साथ हैं…!तुममें से बहुतों को तो एक भी चमचा नसीब नहीं हुआ…!!”
लेकिन कुछ ही देर में अचानक इतने सारे चमचे खीर के पात्र में होने के कारण पात्र की खीर जल्दी समाप्त होने लगी थी।खीर जैसे- जैसे खत्म हो रही थी चमचों की रगड़ से पात्र की दीवारें क्षतिग्रस्त होने लगीं और अंततः खीर के पात्र का संतुलन बिगड़ा और वह धरती पर औंधा लुढ़क गया।
खीर का पात्र गिरने से मालिक को अतिथियों के सामने बहुत अपमान महसूस हुआ ।उसने तुरंत नौकरों को बुलाया और झेंप मिटाने के लिए गुर्रा कर बोला,”यह खराब तली का पात्र यहाँ किसने रखा था…?जाओ!इस बेकार पात्र को कबाड़ में डाल दो!!….और दूसरा पात्र यहाँ रखो ।जल्दी करो..!!”
यह देख बाकी व्यंजनों वाले पात्र, अब खीर वाले पात्र की हँसी उड़ाने लगे…।और चमचे..!! वे अब अन्य व्यंजन वाले पात्रों की ओर तेजी से लपक रहे थे।
समाप्त
मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद????