लघुकथा : ससुराल का काम
ससुराल का काम
घर पर आये मेहमानों को रिया ने बड़े प्यार से माँ के कहने पर चाय बनाकर दी और पास में ही सोफे पर बैठ गई।उसकी माँ भी उसके पास ही बैठी थी।
चाय पीते पीते ही मेहमान महिला ने कहा ‘अरे वाह रिया बड़ी अच्छी चाय बनाई है, इसी तरह तुम घर का काम सीख लो और अच्छा खाना बनाना भी जिससे तुम ससुराल में अपने सास ससुर और पति का दिल जीत सको।’
रिया ने तभी थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा ‘आंटी क्या में पढ़ाई लिखाई सिर्फ ससुराल वालों को खाना बनाकर देने के लिये ही कर रही हूँ ?’
‘..औऱ क्या रिया, लड़कियां तो पैदा ही ससुराल की सेवा के लिए होती है’ आंटी ने हँसते हुए कहा।
‘इसलिय की में लड़की हूँ, आंटी चलो ऐसा करते है आपके पास जो आपका बेटा बैठा है उससे मेरा मुकाबला करवा लो किसी भी चीज में चाहे वो पढाई हो या किसी भी तरह का मुकाबला यदि में हारी तो में वो करूंगी जो आप कहेंगे।’ रिया ने अपने चेहरे पर कठोर भाव लाते हुऐ कहा।
अब तो मेहमान आंटी के हाथ से कप गिरते गिरते बचा। उन्हें रिया के कठोर भाव से डर लग रहा था साथ ही वो अपने बेटे को जानती थी की वो कितना लायक है।
थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया।
रिया की माँ मुस्कुरा रही थी । वह खुश थी की उसकी परवरिश सही दिशा में है और ये सन्नाटा आने वाले समय में रिया की कामयाबी की कहानी कहने वाला शोर बनेगा।
राजेश मेहरा
नई दिल्ली
7-Jan-18