लघुकथा – समय की पकड़
बिपुल रात को देर से घर आया था| माँ निर्मला गुस्से में बुदबुदा रही थी| बिपुल पढ़ाई में तेज़ था पर आवारा लड़कों के साथ संगति से मन लगाकर पढ़ाई न कर सका| आखिर उसे क्लर्क की नौकरी मिल गई| अब देर रात तक काम करता क्या फायदा| बेटा बोलता, “माँ सब ठीक हो जायेगा| समय को कहीं नहीं भागने नहीं देगे| सब ठीक होगा|” अब उसने होशियारी से अमीर परिवार की इकलोती लड़की से विवाह कर लिया| माँ बिपुल और बहू तानिया के साथ बहुत मुश्किल में दिन काट रही थी| बहू को काम नहीं आता था| नकचढ़ी और पीहर की धमकी हर समय उसकी जुबां पर रहती| एक बेटे की माँ बन गई वो भी काम माँ का ही बढ़ गया| माँ निर्मला बेटे को बोलती, “बहू तानिया का काम कब तक मैं करती रहूंगी| उसे भी काम सीखना चाहिए, तू तो कहता था समय के साथ सब ठीक हो जाएगा|” एक दिन रात को बच्चा बिना कपड़ा रह गया और बुखार से एक हफ्ता बहुत बीमार तडफता रहा| डाक्टर ने तानिया को सही सम्भाल के लिए समझाया| डाक्टर बोला, “जो बच्चे की देखभाल माँ कर सकती है कोई और सगा भी नहीं कर सकता| तानिया में एक दम परिवर्तन आ गया| उसने समय की नवज समझ घर में सूझ-बुझ से सिख कर रहना सिख लिया| माँ परिवर्तन को देख बहुत खुश रहने लगी| बेटा बोलता, “माँ मैने कहा था ना समय के साथ पग सब समय को नियत घड़ी में ले आयेंगे|” मौलिक और अप्रकाशित.
रेखा मोहन 15/7/21