लघुकथा रोटी
लघुकथा-रोटी
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आप सभी उदास क्यों हैं,
विक्रम !ने पूछा
मां!ने उदास मन से कहा कुछ नहीं,
बताईये तो क्या बात है।
अरे बेटा!क्या बतांऊ घर में आटा,दाल
सब खत्म है।
पर!तू अभी आया है बाहर से तुझे
क्या बतांऊ–
नही-नहीं मां !बताओ,में भी तो आपका बेटा हूं।
विक्रम ने कहा—
मां!बोली कि इस बार फसल बर्बाद
हो गई!
पानी बरस गया तो सारा अनाज गल
गया।तुझे तो मालूम ही है कि पिता के
देहांत के बाद खेत बटाई पर दे दिए थे।
और तुम्हारी नौकरी दिल्ली में,
लग गई थी तो तुम बाहर चले गए।
में सब को कैसे पाल रही हूं–
क्या बतांऊ!
विक्रम का दिल भर आया—
मां!से बोला आपने कभी कोई ,
परेशानी नहीं बताई।
में भी तो नौकरी रोटी !
के लिए ही कर रहा हूं कि कमाऊंगा,
तो सबका ध्यान रखुंगा—
और खाने -पीने का इन्तजाम करूंगा।
मां!ने विक्रम को सीने से लगा लिया!
कि कितना समझदार हो गया ,
बेटा!पिता के देहांत के बाद—-
अपनी जिम्मेदारी समझने
लगा मेरा बच्चा!!
विक्रम हर महिने मां!को रूपये भेजता
और राशन भी ——
सुषमा सिंह *उर्मि,,