कहानी–‘‘दादी और नदी में सिक्का डालना
कहानी–‘‘दादी और नदी में सिक्का डालना
एक बार मैं अपने दादा-दादी जी को साथ लेकर ट्रेन से दूसरे शहर में शादी में लेकर जा रहा था कि रास्ते में एक नदी का पुल आने वाला था दादी जी ने तुरंत कहा- बेटा जब नदी का पुल आ जाये तो मुझे बता देना। मुझे नदी में सिक्का चढ़ाने हैं सिक्का डालना है और उन्होंने पाँच का एक सिक्का निकाल कर हाथ में रख लिया।
मैंने पूछा नदी में क्यों सिक्का डालना है? तो वे बोली- नदी को हम सभी देवी मानते हैं, नदी में देवी जी का वास होता है। तब मैंने कहा कि- पैसा चढ़ाने से क्या नदी देवी खुश हो जाती है। हाँ बेटा, सभी लोग सिक्के डालते ऐसा ही करते हैं।
तब मैंने कहा- दादी जी आप भी क्या बात करती हैं। यह पहले जमाने कि बात थी। वर्तमान में यह एक अंधविश्वास है और एक रूढिवादी परंपरा के सिवा कुछ भी नहीं है,जो हम लोग अब भी ढोते आ रहे है। दादी जी गुस्सा होने लगी, बोली कि- तुम नयी पीढ़ी के लोग हमारी पुरानी परंपरा को मानते नहीं हो। मैंने कहा- दादी जी पहले जमाने में ताँबे के सिक्के प्रचलन में थे, तब नदी में सिक्के डालने चलन इसीलिए शुरू किया गया होगा कि ताँबा नदी के जल को शुद्ध कर देता है। फिर उसे धर्म से इसीलिए जोड़ दिया होगा कि लोग अधिक से
अधिक ऐसा ही करे, लेकिन वर्तमान में लोहे गिलट और स्टील के सिक्के चलन में है जो कि नदी में डालने पर उसके जल को खराब कर देते हंै। वर्तमान में यह एक परंपरा उचित नहीं।
दादीजी जी को बात समझ में आ गयी वे बोली अच्छा ऐसी बात है। ये तो तुमने सही कहा।
और उन्होंने वह सिक्का वापिस अपने धोती की गाँठ में पुनः बाँध लिया।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़*
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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