#लघुकथा- चुनावी साल, वही बवाल
#लघुकथा-
■ कौन उठाऐ सवाल…?
【प्रणय प्रभात】
चुनावी साल में जोशीले मंत्री घमंडी लाल एक मंच पर थे। हाथ में माइक, खून में उबाल, दिल में भड़ास और दिमाग़ में बवाल। निशाने पर विरोधी दल के नेता और नज़रों के सामने तालियां ठोक कर नारे लगाने वाले चउऐ। बीच-बीच में अंधश्रद्धा जताने वाले थोथे नारे और पक्ष में बनता माहौल। जोश से भरपूर नेताजी की कोशिश और मंशा वही। आम जनता को बरगलाने और चूना लगा कर चने के झाड़ पर चढ़ाने वाली।
भाषण का एक-एक जुमला वही घिसा-पिटा सा। कुल मिला कर दावा यह कि प्रदेश की जनता समझदार हो चुकी है। जो विरोधियों के झांसों में नहीं आएगी। अब मंत्री दर्ज़ा प्राप्त माननीय से कौन पूछता कि यदि जनता इतनी ही समझदार होती तो उनके झांसे में आकर मूर्खता की हैट्रिक क्यों लगाती…?
◆संपादक/न्यूज़&व्यूज़◆
श्योपुर (मध्यप्रदेश)