लघुकथा– अनुत्तरित प्रश्न
लघुकथा– अनुत्तरित प्रश्न
टेबल लैंप के सामने पुस्तक रखते हुए पुत्र ने कहा , ” पापाजी ! सर कल यह चित्रवाला पाठ पढ़ाएंगे. आप समझा दीजिए.”
” लाओ ! यह तो बहुत सरल है. मैं समझा देता हूं.”
फिर बारीबारी से चित्र पर हाथ रखते हुए बताया, ” यह बीज है . इसे जमीन में बोया जाता है. यह अंकुरित होता है . पौधा बनता है . बड़ा होता है. पेड़ बनता है. इस में फूल आते हैं फिर फल लगते हैं.” इस तरह पापा ने पाठ समझा दिया.
पुत्र की जिज्ञासा बढ़ी, “पापाजी ! पेड़ के बीज से पेड़ पैदा होता है ?”
” हां.”
” मुर्गी अंडे देती है . उस से मुर्गी के बच्चे निकलते हैं,” उसने मासूमसा सवाल पूछा.
” हां.”
” तो पापाजी, यह बताइए कि हम कैसे पैदा होते हैं ?”
यह प्रश्न सुन कर पापाजी चकरा गए. कुछ नहीं सुझा . क्या कहूं ? क्या जवाब दूं ? कैसे जवाब दूं ?
बस दिमाग में यह प्रश्न घूम ने लगा, ” हम कैसे पैदा होते है ?”
पुत्र के सवाल ने पापाजी को बगलें झाँकने पर विवश कर दिया. पुत्र ने पापाजी को मौन देख कर अपना प्रश्न पुन: दोहराया दिया. पापाजी ने सामने बैठी पत्नी की ओर देखा और आँखों ही आँखों में उस से पूछा, “अब इस को क्या कहूँ?”
पत्नी ने भी कंधे उचका कर उत्तर दिया, “अब मैं क्या कहूँ?”
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