” लगे पल भी कभी ठगने ” !!
गीत
अंधेरों में उम्मीदों की ,
लगी है आस फिर जगने !
जली बाती , हरे सपने !!
करी खेती है सपनों की ,
मेहनत खूब है सींची !
जगन आँखों में ऐसी है ,
अभी तक आँख ना मींची !
पलकें बोझिल हुई ऐसी ,
लगे हैं रात दिन मथने !!
जगा विश्वास मन में तो ,
भुजबल को संजोया है !
समर हम जीत ही लेंगें ,
उमंगों को पिरोया है !
कठिन होगी परीक्षा तो ,
लगे हैं प्रश्न फिर बंचने !!
सुखों की चाह ना करते ,
तिरे मुस्कान होठों पर !
यहाँ सब जख्म देते हैं ,
मिला मरहम न चोटों पर !
यहाँ पर छल है धोखा है ,
लगे पल भी कभी ठगने !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )