लगी यूं झड़ी फिर ख़्यालात की
लगी यूँ झड़ी फिर ख़्यालात की।
कटेगी नहीं रात बरसात की ।
हँसना अकेले गवाँरा नहीं,
है चाहत हमे फिर मुलाकात की।
इशारों में तुमने ये क्या कह दिया,
बनी गुनगुनाती गज़ल रात की।
न सोचा न समझा न देखा अभी,
कसक सी है दिल में सवालात की।
क्यों जमाने से रिश्ते छुपाते रहें,
नहीं कद्र की उसने जज्बात की।
मुहब्बत तो है रौशनी रूह की,
तबस्सुम खिली चाँदनी रात की।
—–राजश्री——