Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Nov 2022 · 9 min read

लगी में लगन

उस दिन अलसुबह करीब पांच बजे मेरी मीठी नींद को भंग करती इण्टरकॉम की घण्टी घनघना उठी , नीचे अस्पताल से एक उल्टी दस्त की मरीज़ा को देखने का बुलावा आया था । मैं एक चिकित्सक वाली कुत्ता झपकी जैसी नींद से जाग कर बिना तन्द्रा भंग किये अलसाया सा उसके सम्मुख प्रस्तुत हो गया । मेरे सामने उल्टी , दस्त एवं निर्जलीकरण की शिकार एक नवयौवना निढाल हो कर स्ट्रेचर पर पड़ी थी । उसके हालात के परीक्षण एवं हाथ की नस में लगे कैनुला को देख कर तथा साथ आये तीमारदारों से संक्षिप्त विवरण पूंछने पर मुझे ज्ञात हुआ कि पिछले एक दिन से वह पेट दर्द , उल्टी दस्त से ग्रसित है । उसके साथ आये एक झोला छाप डाक्टर साहब उसका इलाज़ चार प्रकार की एंटीबायोटिक्स के साथ ग्लूकोज़ चढ़ा कर घर पर ही कर रहे थे । उन लोगों ने कहा –
” डॉ साहब , हमें इसके ठीक होने की बहुत जल्दी है , हम लोग कोई ख़तरा नहीं लेना चाहते हैं , इस लिये हम इसको आप के यहां भर्ती कर इसका इलाज़ कराना चाहते हैं ”
मैंने उनसे कहा –
” मेरी नज़र में आप लोगों के साथ आये ये डॉ साहब इनको उचित इलाज़ दे रहे थे जिससे ये ठीक हो जाएं गी ।”
( सिद्धान्ततः मैं कभी किसी झोला छाप डॉ के इलाज का खंडन कर उसे नाराज़ नहीं करता , मेरी मान्यता है कि इमरजेंसी में आड़े वख्त और निकटतम दूरी पर जो डॉ स्वरूप सामने मिल कर काम आ जाये और कुछ प्राथमिक उपचार कर दे , वही उसके लिये अच्छा डॉ है )
मेरी इस सलाह को नकारते हुए उन लोगों ने ज़िद पकड़ ली और बोले –
” नहीं सर , हमें इसके ठीक होने की जल्दी है और इसी लिए हम इसे आप के अस्पताल में ही भर्ती करके इलाज कराने के लिये लाये हैं । ”
मैंने पुनः उनको ज़ोर दे कर उसके दस्तों के ठीक होने और एलोपैथिक इलाज़ की सीमायें बताते हुए अपनी राय दी –
” देखिए हर दवा का असर आने में कुछ समय लगता है , जो दवाइयां आप दे रहे हैं लगभग वही मैं दूं गा ”
मेरा व्हाट्सएप विश्वविद्यालय का ज्ञान कि ” loose motions can not be controlled in slow motion ” भी यहां उनकी व्यग्रता के आगे बखारना व्यर्थ था । अतः मैंने उन्हें बताया कि मैं इनको यहां भर्ती करने के बाद अपने इलाज से इनको जल्दी ठीक करने की कोई गारन्टी नही दे सकता और इस संक्रमण को थमने में बहत्तर घण्टे या उससे ज़्यादा समय भी लग सकता है ”
इस पर भी वे लोग अपनी जुम्मेदारी पर उसे मेरे अस्पताल में ही भर्ती करवाने पर अड़े रहे । उनका इतना आग्रह और विश्वास देखते हुए मैंने उसे भर्ती कर लिया तथा उसकी चल रही दवाईयों में से एक – आध दवाई कम करते हुए उसका नुस्ख़ा लिख कर इलाज़ शुरू करवा दिया।
उसे देख कर लौटते हुए अलसुबह भीगी पत्तियों को छेड़ कर आती शीतल हवा के थपेड़ों , पक्षियों के कलरव और तीमारदारों की बहस से मेरी तन्द्रा भंग हो चुकी थी । एक प्याली कड़क चाय के बाद इधर मेरी दैनिक दिनचर्या प्रारम्भ हो गई थी । घड़ी की सुइयों पर टिकी ज़िंदगी के अनुसार मैं अपनी नित्यप्रति दिन की व्यस्तताओं में लग गया ।
जैसे कि ऐसे मरीज़ों के साथ आशंका होती है , तदनुसार दिनभर उसके पल पल के हालात की खबर मुझे दी जाती रही कि कब कब उसे उल्टी , घबराहट हुई या कब फिर मरोड़ के साथ वह फिर ” फिर ” के आई और हर बार इस याचना के साथ कि वो अभी भी ठीक नहीं हुई है और जल्दी से मैं कुछ कर के उसे फटा फट ढीक कर दूं । पर उसका इलाज नुस्खे के अनुसार उसी गति से चलता रहा जैसा मैं उसके लिये सुबह लिख चुका था । दोपहर में ओ पी डी समाप्त कर के एक बार फिर मैं उसे देखने वार्ड में गया । वहां खड़ी एक महिला ने चिंता जनक स्वरों में रहस्य भर कर मेरे करीब आ कर कान में कुछ फुसफुसाते हुए बताया –
” डॉ साहब कल तो इसकी उल्टियों की ये हालत थी कि जैसे किसी ने पतीला धो के रख दिया हो और दस्त ऐसे थे कि जैसे कि मसाला पीस के धर दिया हो ”
मैं प्रत्यक्ष रूप से उसकी बात सुन कर और परोक्ष रूप से अनसुनी करता हुआ वार्ड से बाहर आ गया । बाहर निकल कर उस महिला के बारे में पूंछने पर पता चला कि वो उस मरीज़ा की मां है और अंश कालिक रूप से कुछ घरों में खाना बनाने का कार्य करतीं हैं । उनकी इस समाज सेवा के कार्य के प्रति कृतज्ञ भाव रखते हुए मैं घर आ गया ।
दोपहर के भोजन का वख्त हो चला था , भोजन की मेज़ सजी पड़ी थी । पहले डोंगे के ढक्कन को उठा कर देखा तो धुले मंजे डोंगे में मसालेदार तरी में कोफ्ते तैर रहे थे , मन में उठी एक त्वरित क्रिया के फलस्वरूप ढक्कन वापस ढक दिया ।
” चिकित्सक जीवन हाय तेरी यही कहानी
डोंगे में भरे कोफ्ते न ला सके मुंह में पानी ”
फिर कुछ देर धैर्य धर कर अपने वमन केंद्र को दबाते हुए सिर को एक झटका दे , अपनी सोच को बदल कर कोफ्ते अपनी प्लेट में डाल लिये और अपनी ज़िद्द में पूरा स्वाद ले ले कर खाने लगा । खा – पी कर कुछ देर आराम करते हुए दोपहर ख़ामोशी से गुज़र गयी । हालांकि इस बीच भी उसके हर हालात का आंखों देखा हाल मुझे घड़ी घड़ी प्राप्त होता रहा । उसकी सूरतेहाल की हर खबर किसी एक मुख से निकल कर फिर एक साथ अनेक कानों में जा कर अनेक मुखों और माध्यमों में एक स्वतः उतप्रेरक श्रृंखला बद्ध अभिक्रिया ( self catalytic chain reaction ) की भांति अनेक मुखों को गुंजारित करती हुई मेरे पास प्रतिध्वनित होती रही , जिन सबका आशय यह होता था की वो अभी ठीक नहीं हुई है और उसे ठीक करने के मेरे प्रयासों में अभी भी कुछ कमी है । अर्थात थोड़ी थोड़ी देर में कोई न कोई मुझे कोंचे पड़े था । मुझे अपने माध्यमों से यह भी पता चलता रहा था कि उसके आस पास मिलने जुलने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही थी , जिसे जान कर भी मैं अनजान बना आराम करता रहा ।
फिर करीब पांच बजे उठ कर अभी शाम की चाय का पहला घूंट भरा था कि अचानक मेरे पास खबर आई कि वो लोग अपनी मरीज़ा की तुरंत छुट्टी करवाना चाहते हैं । मैं सुबह से पूरी गम्भीरता , ईमानदारी और सजगता से उसकी देख भाल में जुटा था । मैंने सशंकित हो कर पता करना चाहा कि कहीं हमारी सेवाओं से असंतुष्ट हो कर वो अपने मरीज़ को किसी दूसरे अस्पताल या मेरे प्रतिद्वंद्वी किसी अन्य डॉ के पास तो नहीं ले जा रहे हैं ?
जिसपर मुझे पता चला कि ऐसी कोई बात नहीं है , वे उसे किसी अस्पताल न ले जा कर ब्यूटी पार्लर ले जा रहे हैं ।
उनके इस अभिप्राय को सुन कर मैं हतप्रभ था । कहां अभी तक ठीक न होने की रट लगाये थे और कहां अब ये तुरन्त छुट्टी करवाने के लिये दबाव डाल रहे थे और वो भी अस्पताल से उठ कर सीधे ब्यूटी पार्लर जाने के लिये !
आखिर मैं चाय का आखिरी घूंट पी कर उनको बुलवा कर समझाने के उद्देश्य से अस्पताल के पोर्टिको पर आ कर खड़ा हो गया । वहां का दृश्य देख कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा की मेरे सामने मरीज़ा किसी खूंटे से बंधी रस्सी तुड़ा कर अपनी मां की ओर सीधे भागती किसी गाय की बछिया के समान दौड़ते हुए अस्पताल के गेट पर खड़े ऑटो में बैठने जा रही थी , साथ ही साथ उसके तमाम रिश्तेदार अपना सारा सामान बांध कर वार्ड से बाहर निकल कर अस्पताल के गेट के निकट खड़े एक तिपहिया ऑटो में सवार हो रहे थे ।
मैंने त्योरियां चढ़ाकर डपट कर उन लोगों से कहा –
” आप लोगों ने इसके दस्तों के इलाज का क्या मज़ाक बना रक्खा है , सुबह से आप लोग आफ़त मचाये थे कि दस्तों में आराम नहीं है , जल्दी ठीक कर दो ! और अब ये ब्यूटी पार्लर जाने के लिए छुट्टी की ज़िद , आप लोग चाहते क्या हैं ? इसकी हालत अभी पूरी तरह से ढीक नहीं है इसे यहीं भर्ती रहने दें ”
यह सुन कर वे लोग बोले –
” सर , आज हमारे यहां शादी है , सारे मेहमान आ चुके हैं , सारी तैयारियां हो चुकी हैं ”
इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा –
” देखिए , इसकी हालत अभी पूरी तरह से ठीक हो कर छुट्टी कराने लायक नहीं नहीं है , आखिर किसी एक मेहमान के न होने से कोई शादी रुक तो नहीं जाये गी ”
मेरी बात को बीच में से ही इशारे से रोककर उनमें से कुछ लोग एक साथ चहक कर बोले –
” सर , आज शाम को इसी की तो शादी है ! और इसे तैयार करवाने के लिए ही ब्यूटी पार्लर वाली ने इसकी बुकिंग का जो समय दिया था वो शुरू हो चुका है इसी लिए हम लोग इसे ब्यूटी पार्लर ले जा रहें हैं ”
यह सुन कर मेरे अंदर के चिकित्सक का आत्मविश्वास डगमगा गया । जीवन भर की ” हिस्ट्री टेकिंग ” का अनुभव क्षण भर में बेकार लगने लगा । मैं उसे अपने चिकित्सीय दृष्टिकोण से इलाज दे रहा था पर उसकी ओर से जल्दी ठीक होने की छटपटाहट के व्यवहारिक पक्ष का मुझे कोई भान न था ।
मैं कभी बचपन में सुनी लोकोक्ति के घटित होने से डर रहा था –
” जब द्वारे आई बरात , तो दुलहन को लगी *गास ”
{ मेरे अतिउत्सहिक पाठक ( * ) की जगह ( ह ) लगा कर पढ़ सकते हैं }
मेरे सामने सवाल अब उसके दस्त ठीक होने या न होने का नहीं था , सवाल था निकट भविष्य में उतपन्न परिस्थितियों में उसके साथ घटित होने वाली समस्त संम्भावनाओं एवम जटिलताओं का । मैं नहीं समझ पा रहा था कि उसके दिल की लगी उसकी आंतों की लगी से हारे गी या जीत जाये गी । या फिर कैसे वो अपने पेट की मरोड़ को सहन कर विवाह पद्वति के देर रात तक चलने वाले विवाहिक सप्तपदी के कार्यक्रम में भाग ले पाए गी । हर हाल में मेरे इस प्रसंग में अपनी अति कृमाकुंचन की गति को थाम कर सजन से मिलन की लगन में मगन विवाह पथ गामिनी इस प्रणय पुजारिन का यह प्रयत्न उस शायर की माशूका से महती या दुष्कर था जो किसी ग़ज़ल में दोपहर की तपती धूप में नँगे पांव छत पर अपने माशूक से मिलने आती थी । यह भी डर लगता था की कहीं आंतों की मरोड़ उसकी विदाई की वेदना को न हर ले और अगर वह आगे भी न ठीक हुई तो फिर उसके बाद दुल्हन का जो हो गा सो हो गा , उस दूल्हे की किस्मत का बखान करने में तो लेखनी भी निशब्द हो रही है । क्यों की आमतौर पर ऐसे संक्रमण को ठीक होने में बहत्तर घण्टे लग जाते हैं और वे लोग मेरी चिकित्सीय सलाह के विरुद्ध बारह घण्टे के इलाज के बाद ही जल्दबाज़ी में ज़बरदस्ती उसको ले जा रहे थे ।
तभी उन लोगों ने इस बारे में मेरी शंका का समाधान और तथा मेरे मन में उठते प्रश्नों पर पटाक्षेप करते हुए कहा –
” सर , हम लोगों ने फैसला कर लिया है कि इसकी शादी तो हम लोग करा दें गे , पर ( दस्तों के ) हालात अगर ठीक नहीं हुए तो रुख़्सती टाल दें गे और फिर यहीं ला कर भर्ती कर दें गे ”
मैंने भी उनके निर्णय को उचित ठहराते हुए उनकी हां में हां मिलते हुए कहा –
” ठीक है , आप लोग इसे तुरन्त ले कर ब्यूटी पॉर्लर रवाना हो जायें और आप लोगों में से कोई एक इलाज़ समझने और छुट्टी का पर्चा लेने के लिये रुक जाये ”
इन सब बातों की अफरातफरी के बीच भावी दुल्हन जा कर ऑटो में ठुसी भीड़ में से अपना जिस्म करीब आधा बाहर लटका कर चढ़ गई , लेकिन उसकी आंखे आस पास कुछ खोजने में लगीं थीं तथा ऑटो में बैठे कुछ हाथ उसे पकड़ कर अंदर खींच रहे थे । उसके चेहरे पर जो निखार इतनी एंटीबॉयोटिक , ग्लूकोज़ और विटामिन्स से न आ सका था वो चेहरा अब मिलन की अगन से प्रदीप्त प्रतीत हो रहा था । अचानक उसकी नज़रें मेरे पर पड़ने पर वो अपना एक हाथ मेरी और लहराते हुए बोली –
” सर , मेरी शादी में ज़रूर आना ”
उसके निमंत्रण को उसकी ओर मौन स्वीकृति देते हुए उस समय मुझे कुछ ऐसा लग रहा था जैसे कोई मरीज़ अस्पताल से छुट्टी ले कर नहीं जा रहा था वरन अस्पताल से कोई बारात विदा हो रही थी । मेरे दिल से उसके लिए उठती सदा भी यही दुआ दे रही थी –
साजन से मिलन की दिल की ” लगन ” ,
तेरी आंतों की ” लगी ” को मिटा डाले ।
कजरा न बहे अंचरा न ढले ,
लहंगा भी सदा तेरा साफ रहे ।
अस्पताल कभी न याद आये ,
जा तुझको सुखी संसार मिले ।
=====================================
पार्श्व से कहीं मिलन गीत बज रहा था –
इतनी जल्दी क्या है गोरी साजन के घर जाने की ….
https://youtu.be/fHiW6G8OG-g
दुल्हन से तुम्हारा मिलन हो गा , ओ मन थोड़ी धीर धरो ……
https://youtu.be/tAfFN-YionA

Language: Hindi
267 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3297.*पूर्णिका*
3297.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
ये बेपरवाही जंचती है मुझ पर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कृष्णा तेरी  बांसुरी , जब- जब  छेड़े  तान ।
कृष्णा तेरी बांसुरी , जब- जब छेड़े तान ।
sushil sarna
हर चीज़ मुकम्मल लगती है,तुम साथ मेरे जब होते हो
हर चीज़ मुकम्मल लगती है,तुम साथ मेरे जब होते हो
Shweta Soni
मिथक से ए आई तक
मिथक से ए आई तक
Shashi Mahajan
🙅याद रहे🙅
🙅याद रहे🙅
*प्रणय*
हिम्मत है तो कुछ भी आसान हो सकता है
हिम्मत है तो कुछ भी आसान हो सकता है
नूरफातिमा खातून नूरी
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि------------------
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि------------------
gurudeenverma198
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
आर.एस. 'प्रीतम'
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ
पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ
Buddha Prakash
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
बातों को अंदर रखने से
बातों को अंदर रखने से
Mamta Rani
अज़ीज़ टुकड़ों और किश्तों में नज़र आते हैं
अज़ीज़ टुकड़ों और किश्तों में नज़र आते हैं
Atul "Krishn"
हुनर हर मोहब्बत के जिंदगी में सिखाएं तूने।
हुनर हर मोहब्बत के जिंदगी में सिखाएं तूने।
Phool gufran
ये ईश्वर की दया-दृष्टि ही तो है
ये ईश्वर की दया-दृष्टि ही तो है
Ajit Kumar "Karn"
हम तुम्हारे हुए
हम तुम्हारे हुए
नेताम आर सी
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
रविदासाय विद् महे, काशी बासाय धी महि।
गुमनाम 'बाबा'
*देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों (गीत)*
*देह बनाऊॅं धाम अयोध्या, मन में बसते राम हों (गीत)*
Ravi Prakash
हो सके तो खुद के मित्र बनें शत्रु नहीं
हो सके तो खुद के मित्र बनें शत्रु नहीं
Sonam Puneet Dubey
मन की पीड़ा क
मन की पीड़ा क
Neeraj Agarwal
हाइकु
हाइकु
भगवती पारीक 'मनु'
महिला दिवस कुछ व्यंग्य-कुछ बिंब
महिला दिवस कुछ व्यंग्य-कुछ बिंब
Suryakant Dwivedi
ऐ ज़िंदगी।
ऐ ज़िंदगी।
Taj Mohammad
बुढ़ापा आता है सबको, सभी एहसास करते हैं ! उम्र जब ढ़लने लगती ह
बुढ़ापा आता है सबको, सभी एहसास करते हैं ! उम्र जब ढ़लने लगती ह
DrLakshman Jha Parimal
*
*"परछाई"*
Shashi kala vyas
"सेहत का राज"
Dr. Kishan tandon kranti
हां मैं उत्तर प्रदेश हूं,
हां मैं उत्तर प्रदेश हूं,
Anand Kumar
" बंध खोले जाए मौसम "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
शान्ति कहां मिलती है
शान्ति कहां मिलती है
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...