लगा जो दिल में है उस तीर का क्या
लगा जो दिल में है उस तीर का क्या
नज़र से जो चली , शमसीर का क्या
सफर तो कर भी लूँ कैसे करूँ पर
बंधी जो फ़र्ज़ की ज़ंजीर का क्या
बदलते वक़्त के हाथों में रहती
बदलती इस मेरी तक़दीर का क्या
नहीं जब रंग भर सकते हैं इसमें
कोई ऐसी ग़लत तस्वीर का क्या
वही सब कर रहे बोला जो उसने
छिपी लफ़्ज़ों में जो तासीर का क्या
कोई रांझा न परवाने से कम है
मगर जो शम्अ है उस हीर का क्या
बहुत पहले उसी का हो गया दिल
नहीं जो दिल की उस जागीर का क्या
अगर बुनियाद है कमज़ोर सारी
हुई उस पर जो है तामीर का क्या
नहीं ‘आनन्द’ हमसे पूछता है
बतायें हाल दिल की पीर का क्या
– डॉ आनन्द किशोर